दुनिया भर के ऐतिहासिक महत्व के धरोहरों की पहचान करने वाला और उन्हें सहेज कर रखने वाले यूनेस्को (UNESCO) ने मराठा काल के 12 किलों को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया है. इनमें से 11 किले महाराष्ट्र में हैं. वहीं इस लिस्ट में तमिलनाडु में मौजूद जिंजी का एक किला भी शामिल है. ये सभी किले मराठा गौरव और हिन्दवी स्वराज की स्थापना के लिए किए गए संघर्षों के वैभवशाली गवाह हैं.
17वीं से 19वीं सदी के बीच बने ये किले मराठा साम्राज्य की सैन्य कुशलता, रणनीतिक दूरदर्शिता और वास्तुकला की उत्कृष्टता के प्रतीक हैं. इन किलों के नाम हैं- साल्हेर किला, शिवनेरी किला, लोहागढ़, खंडेरी किला, रायगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, सुवर्णदुर्ग, पन्हाला किला, विजय दुर्ग और सिंधुदुर्ग. इसके अलावा 12वां किला तमिलनाडु का जिंजी किला है.
आइए समझते हैं कि इन किलों का इतिहास क्या है.
सालहेर किला
नासिक के उत्तरी भाग में स्थित सालहेर किला मराठा साम्राज्य का सबसे ऊंचा किला है. 1671 में यह किला शिवाजी महाराज के शासन के अधीन था. 1672 में मुगलों ने इस किले पर हमला किया लेकिन यह लड़ाई मराठों ने जीत ली. इस लड़ाई में मराठा साम्राज्य का नेतृत्व छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति मोरपंत पिंगले और प्रतापराव गुर्जर ने किया था. दूसरी ओर, मुगल सेना का नेतृत्व दिलेर खान और इखलास खान जैसे सेनापतियों ने किया. इसकी दुर्गम स्थिति और रणनीतिक महत्व ने इसे मराठा सैन्य परिदृश्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया.
इसका नाम सालहेर इसलिए पड़ा क्योंकि यह महाराष्ट्र के नासिक जिले की सतना तहसील के सालहेर गांव के पास स्थित है. यह किला सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला पर स्थित है और खूबसूरत नजारों के लिए जाना जाता है.
शिवनेरी किला
शिवनेरी किला शिवाजी महाराज की जन्मस्थली (1630) है, जो पुणे के पास जुन्नर में स्थित है. यह किला माता जीजाबाई और युवा शिवाजी के शुरुआती वर्षों का साक्षी रहा. इसी किले में शिवाजी ने हिंदवी साम्राज्य की स्थापना का सपना देखा था. ये किला पुणे जिले के जुन्नार के पास स्थित है.
इसका निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था और यह मराठा साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण गढ़ था. इसकी रणनीतिक स्थिति और मजबूत संरचना ने इसे मुगल हमलों से सुरक्षित रखा.
अगर इस किले के इतिहास की बात करें तो इसके अतीत का वर्णन 6ठी शताब्दी से मिलता है. शुरू में इस पर मौर्यों और बाद में चालुक्य, राष्ट्रकूट और यादव राजवंशों का शासन था. 13वीं शताब्दी में यह किला दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में आ गया. 1430 में बीजापुर के आदिल शाही वंश ने इस पर कब्जा कर लिया. 1630 में मुगलों ने इस किले पर अधिकार कर लिया. ये वही साल था जब शिवाजी का जन्म हुआ था. 1674 में उन्होंने इस किले पर कब्जा किया.
लोहागढ़
पुणे के पास लोनावाला में स्थित लोहगढ़ किला अपनी अभेद्य संरचना के लिए प्रसिद्ध है. लोहा गढ़ यानी लोहे जैसी संरचना. इसे 'लौह किला' कहा जाता है, क्योंकि इसकी मजबूती ने कई हमलों को नाकाम किया. शिवाजी महाराज ने इसे कई बार जीता और वे इसका उपयोग खजाने को सुरक्षित रखने के लिए करते थे. इसका प्राकृतिक परिवेश और सैन्य महत्व इसे विशेष बनाता है.
इस किले पर कई राजवंशों ने कब्जा किया. लेकिन इसे प्रसिद्धि तब मिली जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसे 1648 में कब्जे में लिया.
यह किला अपने विशाल दरवाजों, भीमकाय दीवारों और सबसे अहम विनचुकाटा (बिच्छू की पूंछ) जैसी पर्वताकार रचना के लिए जाना जाता है, जो किले के अंतिम छोर पर मौजूद है.
खंडेरी किला
खंडेरी किला मराठा साम्राज्य की समुद्री चौकी थी. रायगढ़ के पास अरब सागर में स्थित खंडेरी किला मराठा साम्राज्य की समुद्री हमलों से रक्षा करता था. यह किला रायगढ़ में अलीबाग के पास समुद्र के बीच एक द्वीप पर स्थित है. यह मेनलैंड से 5 किलोमीटर दूर है.
इस किले को 1660 में शिवाजी महाराज के आदेश पर बनवाया गया था ताकि मुंबई और आसपास के समुद्री रास्तों पर मराठों का नियंत्रण बना रहे. ये किला लंबे समय तक मराठा नौसेना का केंद्र बना रहा. समंदर में स्थित होने की वजह से खंडेरी किला आज एक मशहूर पर्यटन स्थल बन गया है. यहां नाव के जरिये पहुंचा जा सकता है.
रायगढ़ किला
रायगढ़ किले का इतिहास शिवाजी महाराज के संघर्षों से जुड़ा हुआ है. 1666 में शिवाजी महाराज ने 17 अगस्त को मुगल शासक औरंगजेब की सुरक्षा व्यवस्था को यूं चकमा दिया कि उसके होश उड़ गए. इसकी वजह से शिवाजी को आगरा की कैद से मुक्ति मिल गई. इस मुक्ति के बाद छत्रपति शिवाजी ने 91 दिनों की यात्रा की और महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में पहुंचे थे.
मूल रूप से रायरी के नाम से जाना जाने वाला यह किला 1656 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्थानीय राजा चंद्रराव मोरे से जीता था. रायगढ़ जिले की सरकारी वेबसाइट के अनुसार शिवाजी महाराज ने इसका जीर्णोद्धार कराया और 1674 में इसे अपनी राजधानी बनाया. इसके बाद इसका नाम रायगढ़ रखा गया. शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भी इसी किले में हुआ था जिसके बाद उन्हें छत्रपति कहा जाने लगा.
राजगढ़ किला
मराठा इतिहास को आकार देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण सही मायने में इस किले का नाम राजगढ़ किला पड़ा. महाराष्ट्र सरकार का पर्यटन विभाग बताता है कि मूल रूप से मुरुम्बदेव के नाम से जाना जाने वाला यह किला 1647 में शिवाजी महाराज द्वारा जीता गया था. उन्होंने इसे एक दुर्जेय गढ़ में बदल दिया था. 1674 में रायगढ़ किले में स्थानांतरित होने से पहले यह किला 26 वर्षों से भी अधिक समय तक मराठा साम्राज्य की राजधानी रहा.
विहंगम सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के शीर्ष पर स्थित राजगढ़ किला मराठा गौरव, अदम्य प्रतिरोध और स्थापत्य कला की प्रतिभा का एक स्थायी प्रतीक है.
इस किले ने शिवाजी के जीवन चढ़ाव देखा और यहीं पर उनकी पत्नी की मृत्यु हुई. इसी किले में शिवाजी के पुत्र राजाराम प्रथम का जन्म हुआ और यहीं पर उनकी पत्नी सईबाई का निधन भी हुआ. यह वह किला है जहां से शिवाजी ने अपने कई सैन्य अभियानों की योजना बनाई और 1664 में सूरत से लूटे गए धन को सहेज कर रखा.
प्रतापगढ़ किला
शिवाजी महाराज की युद्धनीति, कूटनीति और अद्भुत बल का उद्घोष करता ये किला सैलानियों को इतिहास की उस घटना से परिचय करवाता है जिसके छत्रपति शायद सबसे चर्चित हैं.10 नवंबर 1659 को इसी किले की जमीन पर शिवाजी और आदिलशाही कमांडर अफजल खान की भिड़ंत हुई थी.
दोस्ती का न्योता देकर दुश्मनी करने की भूल करने वाले अफजल खान को इसी किले में शिवाजी ने बघनख से मार गिराया था. इस किले पर शिवाजी की इस चतुराई ने दुश्मनों के बीच उनके दबदबे और खौफ को कई गुना बढ़ा दिया.
प्रतापगढ़ का किला समुद्रतल से लगभग 3500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. छत्रपति शिवाजी ने इस किले का निर्माण वर्ष 1656 में करवाया था. किले के अंदर 4 झीलें हैं. जो गर्मियों में तो सूख जाती हैं लेकिन मॉनसून का जल पाकर पूर्ण यौवन को प्राप्त कर उठती है. प्रतापगढ़ किले में शिवाजी की करीब 17 फीट घुड़सवारी वाली कांस्य की प्रतिमा आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. इस मूर्ति में घोड़े की एक टांग ऊपर उठी है, जिसका संदेश यह है कि यहां हुई लड़ाई में योद्धा जीवित रहा था.
सुवर्ण दुर्ग
सुवर्ण दुर्ग, जैसा कि नाम ही कहता है-सोने जैसा दुर्ग. इसके नाम के अनुरूप ही इस किले का गौरव है और इसकी मजबूती है. ये किला रत्नागिरी जिले में दापोली के पास समुद्र में स्थित है. मराठों ने अपनी नौसेना को तेजी से विकसित करते हुए इसे तत्कालीन विश्व की शीर्ष जल शक्तियों में शुमार करवाया था. यही वजह है कि उनके कई किले समंदर के किनारे स्थित हैं. सुवर्ण दुर्ग एक ऐसा ही किला है. शिवाजी ने मराठाओं की नौसैनिक शक्ति बढ़ाने के लिए इस किले पर कब्जा किया था.
इस किले की विशाल मोटी दीवारें, भीमकाय तोपें और समुद्र से मिली सुरक्षा इसे खास बनाती है. सुवर्णदुर्ग ने मराठाओं का समुद्री व्यापार और उनके राज्य की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसकी मजबूत संरचना उत्कृष्ट मराठा इंजीनियरिंग की कहानी कहती है.
पन्हाला किला
पन्हाला किला यानी कि सांपों का घर. ये किला कोल्हापुर मुख्य शहर से 20 किलोमीटर स्थित है. इसका निर्माण 800 वर्ष पहले 1178-1209 के बीच शिलाहार शासक भोज द्वितीय ने करवाया था.
1659 में जब आदिलशाही कमांडर अफजल खान शिवाजी के हाथों मारा गया तो शिवाजी महाराज ने इस किले को बीजापुर से अपने अधीन ले लिया. लेकिन इस किले के आधिपत्य को लेकर बीजापुर सल्तनत से शिवाजी की लड़ाई जारी रही. 1673 ईस्वी में इसपर शिवाजी महाराज का अधिकार हो गया. कहा जाता है कि शिवाजी पन्हाला किले में सबसे अधिक समय तक रहे थे. जब शिवाजी का शासन शीर्ष पर था तो इस किले में 15 हजार घोड़े और 20 हजार सैनिक रहा करते थे. कालांतर में यह किला अंग्रेजों के अधीन हो गया था.
विजय दुर्ग
विजयदुर्ग किला जिसे 'पूर्व का जिब्राल्टर' कहा जाता है, महाराष्ट्र के कोंकण तट पर सिंधुदुर्ग जिले में अरब सागर के किनारे स्थित है. यह मराठा साम्राज्य की नौसैन्य शक्ति का प्रतीक है. यह किला अरब सागर के किनारे एक चट्टान पर बना हुआ है.
महाराष्ट्र पर्यटन विभाग के अनुसार विजयदुर्ग किले का निर्माण 12वीं शताब्दी में शिलाहार वंश के राजा भोज द्वितीय द्वारा करवाया गया था. शुरुआत में इसे पास के गिर्ये गांव के नाम पर "घेरिया" के नाम से जाना जाता था.
अरब सागर के किनारे स्थित इस किले की रणनीतिक और सामरिक स्थिति ने इसे एक प्रमुख सैन्य चौकी बना दिया था. 1653 में मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज ने आदिलशाही शासकों से इस किले छीन लिया और इसका नाम बदलकर विजयदुर्ग रख दिया. इसका अर्थ है "विजय का किला".
मराठों के शासन में विजयदुर्ग ने नौसैनिक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मराठा नौसेना के कमांडर कान्होजी आंग्रे ने इस किले को एक गढ़ के रूप में इस्तेमाल किया. इससे अरब सागर पर मराठा नौसेना का वर्चस्व मज़बूत हुआ.
सिंधु दुर्ग
सिंधुदुर्ग किला महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में मालवण के पास अरब सागर के बीच एक सुरम्य द्वीप पर स्थित है. इस किले का निर्माण शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य समुद्री सरहदों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से करवाया था.
छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1664 में इसका निर्माण शुरू करवाया जो 1667 में पूरा हुआ. 48 एकड़ में फैला यह किला 3 किमी लंबी दीवारों और 22 बुर्जों से सुसज्जित है. इस किले के अंदर कई कुएं, मंदिर और घर बने हुए हैं.
इस किले का रणनीतिक स्थान समुद्री हमलों से रक्षा करने में और व्यापार को दिशा निर्देशन में देने में सहायक था. इस किले के दमपर मराठा नौसेना ने पुर्तगालियों को चुनौती दी.
जिंजी किला
जिंजी किला तमिलनाडु में स्थित है. यह किला मराठा साम्राज्य के दक्षिणी विस्तार का प्रतीक है. इसे 'पूर्व का ट्रॉय' कहा जाता है. 1677 में शिवाजी ने इसे जीता. 1680 में शिवाजी की मृत्यु के बाद 1689-1698 तक राजाराम ने यहीं से मुगलों के खिलाफ स्वराज्य का संचालन किया. यह किला मराठा साम्राज्य की व्यापक पहुंच और सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है.
इस किले को भी 12 जुलाई 2025 को यूनेस्को ने 'मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स ऑफ इंडिया' के तहत विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है. जिंजी किला तीन पहाड़ियों कृष्णगिरी, राजगिरी, और चंद्रयानदुर्ग पर फैला हुआ है. ये किला 11 वर्ग किमी में 800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इसका निर्माण मूल रूप से चोल वंश ने 9वीं शताब्दी में शुरू किया था. 17वीं शताब्दी में यह किला तब मराठा साम्राज्य का हिस्सा बना जब 1677 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसे बीजापुर सल्तनत से जीता.
जिंजी किला मराठा साम्राज्य की सैन्य शक्ति, रणनीतिक दूरदर्शिता और सांस्कृतिक एकीकरण का प्रतीक है.
---- समाप्त ----