झील का संकेत, माला की पहचान और 13वें लामा के शव की दिशा... कैसे खोजे गए थे वर्तमान दलाई लामा?

2 days ago 2

दलाई लामा के उत्तराधिकारी (पुनर्जन्म) का मामला सुर्खियों में है. तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख पेन्पा त्सेरिंग ने दलाई लामा के पुनर्जन्म के मामले में चीन के हस्तक्षेप करने की कोशिश का सख्त विरोध किया है. उन्होंने कहा कि पुनर्जन्म एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है. ऐसे में चीन कैसे तय कर सकता है कि अगला दलाई लामा कहां पैदा होगा. आध्यात्मिक गुरु ख़ुद तय करते हैं कि उन्हें कहां पैदा होना है.

नया दलाई लामा होता है पिछले का पुनर्जन्म
दलाई लामा के उत्तराधिकार का मामला चर्चा में आने के साथ ही यह भी चर्चा का विषय बन चुका है कि तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च धार्मिक नेता का चयन आखिर कैसे होता है. इसमें यह भी तथ्य है कि हर नया दलाई लामा पिछले लामा का पुनर्जन्म होता है. इसका चुनाव नहीं होता है बल्कि उसकी खोज की जाती है. इस खोज में कई प्रतीकों-संकेतों का अहम ध्यान रखा जाता है और इसके लक्षणों के आधार पर हर तरीके से संतुष्ट होने के बाद नए दलाई लामा की घोषणा की जाती है.

माना जाता है कि मृत्यु के बाद दलाई लामा नए शरीर में पुनर्जन्म लेते हैं. उनके निधन के बाद वरिष्ठ भिक्षु एक ऐसे बच्चे को खोजते हैं जो दलाई लामा का अगला अवतार हो. वरिष्ठ भिक्षु कुछ आध्यात्मिक संकेतों को गहराई से देखते हैं. वे सपनों में आए संकेतों और छवियों का विश्लेषण करते हैं. देखते हैं कि मृत्यु के समय दलाई लामा की मुद्रा क्या थी, शव किस दिशा में था, और दाह संस्कार के समय धुएं की दिशा क्या थी. इसके अलावा ल्हामो लात्सो की प्रमुख झील भी इस खोज में अहम भूमिका निभाती है. यह प्रक्रिया जितनी रोचक है उतनी ही जटिल भी और कई बार अविश्वसनीय भी. इसे ऐसे सामान्य तौर पर नहीं समझा जा सकता है.

दलाई लामा की किताब में है पूरी प्रोसेस का जिक्र
इसे समझने का एक खास जरिया है वर्तमान दलाई लामा की खोज कैसे हुई, इस बारे में तफसील से जाना जाए. हिमाचल के धर्मशाला में रह रहे वर्तमान दलाई लामा की खोज भी काफी रोचक रही थी. उन्होंने इसका जिक्र अपनी किताब 'My Land And My People: Memoirs Of The Dalai Lama Of Tibet' में बहुत विस्तार से किया है. वह लिखते हैं कि 'मैं 1935 में, तिब्बती कैलेंडर के वुड हॉग वर्ष के पांचवें महीने के पांचवें दिन, तिब्बत के पूर्वोत्तर में टाक्सर नामक एक छोटे से गांव में पैदा हुआ था. टाक्सर दोखम क्षेत्र में स्थित है. "दो" का अर्थ है घाटी का निचला हिस्सा जो मैदानों में मिलता है, और "खम" तिब्बत का पूर्वी हिस्सा है जहां खम्पा नाम से एक खास तिब्बती नस्ल रहती है.'\

Dalai Lama

साधारण परिवार से हैं दलाई लामा

दलाई लामा अपने बचपन को याद करते हुए और फिर बाद के अपने अनुभवों से लिखते हैं कि 'हमारे परिवार का जीवन साधारण था, लेकिन सुखी और संतुष्ट था, और इस संतुष्टि का बहुत सारा श्रेय थुपटेन ग्यात्सो, तेरहवें दलाई लामा को जाता था, जो कई वर्षों तक तिब्बत के आध्यात्मिक और लौकिक शासक रहे थे. उन्होंने तिब्बत की स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थिति को स्पष्ट और परिभाषित किया था.'

साल 1933 में हुआ था 13वें लामा का निधन

वह किताब में यह भी दर्ज करते हैं कि साल 1933 (तिब्बती वॉटर बर्ड ईयर) में, थुपटेन ग्यात्सो का निधन हो गया और इस खबर ने तिब्बत को उदास कर दिया. इस समाचार को मेरे गांव में लाने वाले मेरे ही पिता थे. वे कुंभम में बाजार गए थे और वहां के बड़े मठ में उन्होंने यह सुना था. तेरहवें दलाई लामा ने तिब्बत की शांति और कल्याण के लिए इतना कुछ किया था कि लोगों ने उनकी श्रद्धा और सम्मान के प्रतीक के रूप में एक विशेष भव्यता वाला स्वर्ण मकबरा बनाने का फैसला किया.

...फिर शुरू हुई नए दलाई लामा की खोज

प्राचीन रीति के अनुसार, यह शानदार मकबरा ल्हासा की राजधानी में पोताला पैलेस के भीतर बनाया गया. फिर इसके बाद वो समय आता है जो सबसे अहम था. नए दलाई लामा की खोज. वर्तमान दलाई लामा किताब में आगे लिखते हैं कि, 'तेरहवें दलाई लामा के निधन के साथ, उनके पुनर्जन्म की खोज तुरंत ही शुरू हो गई, क्योंकि हर एक दलाई लामा अपने पूर्ववर्ती का पुनर्जन्म होता है. पहले दलाई लामा, जो 1391 ईस्वी में पैदा हुए थे वह करुणा रूपी बुद्ध चेनरेसी के अवतार थे. उन्होंने सभी जीवित प्राणियों की रक्षा करने का व्रत लिया था.'

क्या-क्या प्रक्रिया अपनाई गई?

नए दलाई लामा की खोज के लिए प्रक्रिया के हर पहलू पर प्रकाश डालते हुए दलाई लामा इसका विस्तार से वर्णन करते हैं. उनकी लिखी किताब की मानें तो 'सबसे पहले, तिब्बती राष्ट्रीय सभा की ओर से एक रीजेंट नियुक्त किया गया, जो नए पुनर्जन्म के मिलने और परिपक्व होने तक देश का शासन संभालेगा. फिर, प्राचीन रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार, राज्य के दैवज्ञों और विद्वान लामाओं से परामर्श किया गया ताकि यह पता लगाया जा सके कि लामा का अगला जन्म कहां हुआ है.

बादलों का बनना, कवक का उगना जैसे मिले संकेत

जब इससे जुड़े संकेतों को देखा जाना शुरू किया गया तो सबसे पहले ल्हासा से उत्तर-पूर्व दिशा में असामान्य बादल बनते देखे गए. वह लिखते हैं कि '13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद, उनके शरीर को ल्हासा में उनके ग्रीष्मकालीन निवास नोर्बुलिंग्का में एक सिंहासन पर दक्षिण की ओर मुख करके रखा गया था, लेकिन कुछ दिनों बाद देखा गया कि उनका चेहरा पूर्व की ओर मुड़ गया था. उस मंदिर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में, जहां उनका शरीर रखा था, एक लकड़ी के खंभे पर अचानक ही एक बड़े तारे जैसे आकार का एक कवक उग आया था. यह सारे संकेत उस दिशा की ओर इशारा करते थे जहां नए दलाई लामा की खोज की जानी थी. इसके बाद, 1935 में, (तिब्बती वुड बोर ईयर), रीजेंट ल्हासा से लगभग नब्बे मील दक्षिण-पूर्व में स्थित चोखोरग्याल के पवित्र झील ल्हामो लात्सो गए.

Dalai Lamaल्हामो लात्सो झीलः पवित्र और दलाई लामा के जुड़े संकेत बताने वाली झील

ल्हामो लात्सो झील की भूमिका

दलाई लामा की मानें तो 'तिब्बत के लोग मानते हैं कि इस झील के पानी में भविष्य की झलक देखी जा सकती है. तिब्बत में कई ऐसी पवित्र झीलें हैं, लेकिन ल्हामो लात्सो सबसे प्रसिद्ध है. कभी-कभी दर्शन अक्षरों के रूप में प्रकट होते हैं, और कभी-कभी स्थानों और भविष्य की घटनाओं के चित्रों के रूप में. कई दिनों तक प्रार्थना और ध्यान में बिताए गए, और फिर रीजेंट ने तीन तिब्बती अक्षरों—आह, का और मा—का दर्शन किया. फिर एक मठ का चित्र दिखा जिसकी छतें हरी और सुनहरी थीं, और एक नीले रंग की टाइलों वाला घर.' अपनी किताब के पहले चैप्टर में ही दलाई लामा जिक्र करते हैं कि उनके घर में फर्श पर नीली टाइलें थीं.

संकेतों के आधार पर भेजे गए खोजी दल

वह कहते हैं कि 'इन दर्शनों का विस्तृत विवरण लिखा गया और इसे सख्त गोपनीय रखा गया. अगले वर्ष, ऊंची पदवी वाले लामाओं और गणमान्य व्यक्तियों को, तिब्बत के सभी हिस्सों में उस स्थान की खोज के लिए भेजा गया जो रीजेंट ने झील में देखा था. पूर्व की ओर गए विद्वानों ने सर्दियों के दौरान हमारे दोखम क्षेत्र में प्रवेश किया, और उन्होंने कुंभम मठ की हरी और सुनहरी छतों को देखा. तक्त्सेर गांव में, उन्होंने तुरंत एक नीली टाइलों वाले घर को नोट किया. उनके नेता ने पूछा कि क्या उस घर में रहने वाले परिवार में कोई बच्चा है, और उन्हें बताया गया कि वहां लगभग दो साल का एक लड़का है.'

घर, जहां हुआ था नए दलाई लामा का जन्म

किताब My Land And My People में जिक्र मिलता है कि इस महत्वपूर्ण बात को सुनकर दल के दो सदस्य, एक नौकर और दो स्थानीय मठवासी अधिकारियों के साथ, जो उनके मार्गदर्शक थे, छद्म वेश में उस घर में गए. मुख्य दल के एक जूनियर मठवासी अधिकारी, जिनका नाम लोसांग त्सेवांग था, ने खुद को नेता बताया जबकि वास्तविक नेता, सेरा मठ के लामा केवत्सांग रिनपोचे, साधारण कपड़ों में थे और नौकर की तरह व्यवहार कर रहे थे.

शुरू हुई संकेतों की खोज

दलाई लामा लिखते हैं कि, 'घर के द्वार पर, अजनबियों का स्वागत मेरे माता-पिता ने किया, जिन्होंने लोसांग को मालिक समझकर घर में आमंत्रित किया, जबकि लामा और अन्य को नौकरों के क्वार्टर में ले जाया गया. वहां उन्होंने परिवार के छोटे बच्चे को देखा, और जैसे ही उस छोटे लड़के ने लामा को देखा, वह उनके पास गया और उनकी गोद में बैठना चाहा. लामा ने एक भेड़ की खाल से बनी अस्तर वाला लबादा पहना था, लेकिन उनके गले में तेरहवें दलाई लामा की माला थी. छोटे लड़के ने उस माला को पहचान लिया और उसे मांगने लगा.'

दो साल के बच्चे में दिखा आकर्षण

लामा ने वादा किया कि अगर वह बता दे कि वे कौन हैं, तो उसे माला दे देंगे, और लड़के ने जवाब दिया कि वे "सेरा-अगा" हैं. स्थानीय बोली में इसका अर्थ हुआ "सेरा के लामा". लामा ने पूछा कि "मालिक" कौन है, और लड़के ने लोसांग का नाम बताया. उसने असली नौकर का नाम भी बताया, जो अमदो कासांग था. लामा ने पूरे दिन उस छोटे लड़के को बहुत रुचि के साथ देखा और हर बार उनकी रुचि उसमें बढ़ती गई, जब तक कि उसे बिस्तर पर न ले जाया गया वह उसकी हर गतिविधि को देखते रहे. पूरा दल रात भर उस घर में रुका, और अगली सुबह, जब वे जाने की तैयारी कर रहे थे, वह लड़का अपने बिस्तर से उठा और जिद करने लगा कि वह उनके साथ जाना चाहता है. 14वें वर्तमान दलाई लामा लिखते हैं कि 'वह लड़का मैं था.'

क्या पुनर्जन्म मिल गया था?

दलाई लामा लिखते हैं कि 'अब तक, मेरे माता-पिता को उन यात्रियों के असली मिशन के बारे में कोई ठीक जानकारी नहीं थी, लेकिन कुछ दिनों बाद वरिष्ठ लामाओं का पूरी खोज दल हमारे घर आया. तब मेरे माता-पिता को समझ में आया कि मैं पुनर्जन्म हो सकता हूं, क्योंकि तिब्बत में कई अवतारी लामा हैं, और मेरा बड़ा भाई पहले ही उनमें से एक साबित हो चुका था. कुंभम मठ में हाल ही में एक अवतारी लामा की मृत्यु हुई थी, और उन्हें लगा कि आगंतुक उनके पुनर्जन्म की खोज में हो सकते हैं, लेकिन यह उनके दिमाग में नहीं आया कि मैं खुद दलाई लामा का पुनर्जन्म हो सकता हूं. 

मैंने जो कुछ भी लामा से कहा था, उसने उन्हें संकेत दिया कि शायद उन्होंने पुनर्जन्म को खोज लिया, जिसकी उन्हें तलाश थी. दल के लोग अपने साथ दो एकसमान काली मालाएं लाए, जिनमें से एक तेरहवें दलाई लामा की थी. जब उन्होंने मुझे दोनों दीं, तो मैंने उनकी माला ली और और उसे अपनी गर्दन में डाल लिया. लामा लिखते हैं कि 'यह सब मैं उस आधार पर बता रहा हूं जो मुझे बाद में बताया गया कि मैंने तब क्या किया था.'

Dalai Lama

...लेकिन कुछ परीक्षण अभी बाकी थे

यही परीक्षा दो पीली मालाओं के साथ भी की गई. इसके बाद, उन्होंने दो ड्रम पेश किए, एक बहुत छोटा ड्रम जो दलाई लामा ने सेवकों को बुलाने के लिए इस्तेमाल किया था, और एक बड़ा, आकर्षक और सुनहरे पट्टियों वाला ड्रम. मैंने छोटा ड्रम चुना और उसे उसी तरह बजाना शुरू किया, जैसे प्रार्थनाओं के दौरान ड्रम बजाया जाता है. अंत में, उन्होंने दो छड़ियां पेश कीं. मैंने गलत छड़ी को छुआ, फिर रुककर उसे कुछ देर तक देखा, और फिर मैंने दूसरी छड़ी ली, जो दलाई लामा की थी, और उसे अपने हाथ में पकड़ लिया. 

संकेत, जिन्हें बाद में खोजा गया और तथ्यों से मिलाया गया
बाद में, खोज टीम को मेरी  हिचकिचाहट पर आश्चर्य हुआ था. आश्चर्य इसलिए क्योंकि उन्हें पता चला कि पहली छड़ी को भी कभी दलाई लामा ने इस्तेमाल किया था और उन्होंने इसे एक लामा को दे दिया था, जिसने इसे केवत्संग रिनपोछे को दिया था. इन परीक्षाओं से वे और अधिक आश्वस्त हो गए कि पुनर्जन्म मिल गया है, और उनका यह भरोसा रीजेंट द्वारा झील में देखे गए तीन अक्षरों के दर्शन से और मजबूत हुआ. उनका मानना था कि पहला अक्षर, ‘आ’, आमदो के लिए था, जो हमारे जिले का नाम था. ‘का’ कुंभम के लिए हो सकता था, जो आसपास के सबसे बड़े मठों में से एक था, और जिसे रीजेंट ने दर्शन में देखा था; या ‘का’ और ‘मा’ दो अक्षर गांव के ऊपर पहाड़ पर स्थित कर्मा रोलपाई दोर्जे मठ के लिए हो सकते थे.

13वें दलाई लामा ने जीवित रहते भी दिए थे कुछ संकेत

उन्हें यह भी महत्वपूर्ण लगा कि कुछ साल पहले, तेरहवें दलाई लामा ने चीन से लौटते समय कर्मा रोलपाई दोर्जे मठ में रुके थे. वहां मठ के अवतारी लामा ने उनका स्वागत किया था, और गांव के लोगों, जिसमें मेरा नौ साल का पिता भी शामिल था, ने उन्हें श्रद्धांजलि और सम्मान दिया था. यह भी याद किया गया कि दलाई लामा ने मठ में अपनी एक जोड़ी जूते या जच्हेन छोड़ दिए थे. उन्होंने उस घर को भी कुछ देर तक देखा था, जहां मेरा जन्म हुआ, और टिप्पणी की थी कि यह एक खूबसूरत जगह है.इन सभी तथ्यों से, खोज दल पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि पुनर्जन्म की खोज पूरी हो गई है.' लामा लिखते हैं कि यह विश्वास हो जाने के बाद आगे की प्रक्रियाएं शुरू हो गईं और फिर एक लंबी प्रोसेस के बाद मैं 14वां दलाई लामा बनाया गया.

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