भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक वेस्ट उत्पादक देश है. यहां प्लास्टिक का इस्तेमाल लगभग कई चीजों में किया जाता है प्लास्टिक से बड़ी चीजें सस्ती होने के साथ ही सालों साल चलती हैं, लेकिन इसकी वजह से कई गंभीर समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है.
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भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक वेस्ट उत्पादक देश है.
भारत में प्लास्टिक का इस्तेमाल भारी मात्रा में किया जाता है. इसका एक मुख्य कारण ये है कि कांच और स्टील आदि की तुलना में यह काफी सस्ता मिलता है और इसके टूटने का खतरा काफी कम होता है और यह सालों साल चलता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से आगे चलकर आपको कई गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. प्लास्टिक से केवल पर्यावरण को ही नुकसान नहीं पहुंचता बल्कि इसका इस्तेमाल करने से शरीर में भी माइक्रोप्लास्टिक कण जाते हैं.
इन माइक्रोप्लास्टिक कण शरीर में हार्मोन्स के लेवल में गड़बड़ी करने के साथ ही प्रजनन क्षमता पर भी बुरा असर डालते हैं. साथ ही इनसे क्रॉनिक डिजीज जैसे कैंसर का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है. भारत, दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक वेस्ट उत्पादक है.
क्या होते हैं माइक्रोप्लास्टिक?
5 mm छोटे प्लास्टिक के कण, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है, बायोलॉजिकल रूप से एक्टिव माने जाते हैं. एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि माइक्रोप्लास्टिक लोगों के खून, फेफड़ों, हार्ट, प्लेसेंटा, ब्रेस्ट मिल्क और स्पर्म में पाए गए हैं. माइक्रोप्लास्टिक्स में ज्यादातर ईडीसी (एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल्स) होते हैं, ये केमिकल्स नेचुरल हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन, टेस्टोस्टेरोन, थायराइड और कोर्टिसोल को ब्लॉक करते हैं और इससे शरीर में कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं.
- बिस्फेनॉल ए (बीपीए) और बीपीएस: पानी की बोतलों, फूड कंटेनरों, और थर्मल पेपर में इस्तेमाल किए जाते हैं.
- फ्थैलेट्स: प्लास्टिक को सॉफ्ट करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और ब्यूटी प्रोडक्ट्स, खिलौनों, और आईवी ट्यूबिंग में पाए जाते हैं.
- पीएफएएस: फूड पैकेजिंग और नॉन-स्टिक कुकवेयर में पाए जाते हैं.
स्टडी में क्या सामने आया
चीन और भारत में हाल ही में हुई एक स्टडी में सामने आया कि सीमन में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी से स्पर्म की संख्या, कंसन्ट्रेशन और गतिशीलता में कमी आई. BPA और फथेलेट्स (Phthalates) के संपर्क में आने से टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम होता है और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH) का लेवल बढ़ता है. इससे एंडोक्राइन डिसऑर्डर का खतरा बढ़ता है. इस स्टडी से यह बात सामने आई कि माइक्रोप्लास्टिक का इस्तेमाल करने से पुरुषों की प्रजनन हेल्थ पर काफी बुरा असर पड़ता है.
फूड एंड केमिकल टॉक्सिकोलॉजी (2023) में पब्लिश एनिमल स्टडी से पता चला है कि पॉलीस्टाइरीन माइक्रोप्लास्टिक्स (20 μg/L) की कम खुराक भी टेस्टोस्टेरोन के लेवल को बाधित करती है, स्पर्म प्रोडक्शन को बाधित करती है और रक्त-वृषण अवरोध (Blood-Testis Barrier) को नुकसान पहुंचाती है. ओवरी में भी इसी तरह के प्रभाव देखे गए, जहां माइक्रोप्लास्टिक्स ने एंटी-मुलेरियन हार्मोन के लेवल को कम कर दिया, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को ट्रिगर किया और सेल डैमेज के खतरे को बढ़ाया.