बिहार में अपराधियों ने नहीं मौसम ने बंदूकें चलाईं, जरा पुलिस की मजबूरी समझिए

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बिहार में 17 जुलाई को पांच हथियारबंद अपराधियों ने पटना के पारस अस्पताल में घुसकर चंदन मिश्रा नामक एक मरीज की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके पहले पूर्णिया में जादू-टोने के शक में एक परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया गया. इसी हफ्ते नालंदा में बच्चों के झगड़े से उपजे विवाद में दो लोगों की गोली मारकर हत्या की गई. पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका और वकील जितेंद्र महतो की दिनदहाड़े हत्या हुई जिसने पूरे बिहार को हिला दिया. ताबड़तोड़ घटनाओं में छपरा में सरकारी शिक्षक संतोष राय और सीतामढ़ी में कारोबारी वसीम खान को गोली मारी गई. बेगूसराय में दिनदहाड़े एक युवक की हत्या की गई. बिहार में लागातार होती आपराधिक घटनाओं ने राज्य में मौजूदा कानून-व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े किए हैं. पर बिहार पुलिस यह मानने को तैयार नहीं है कि यह कानून व्यवस्था का मामला है. बिहार पुलिस कह रही है ये तो मौसम के चलते हो रहा है.  

बिहार में हाल के दिनों में बढ़ती हत्या की घटनाओं के चलते विपक्ष राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है. विधानसभा चुनाव सर पर हैं सरकार की साख खतरे में है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के दोनों डिप्टी सीएम को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि राज्य में ताबड़तोड़ हो रही हत्याओं के बारे में राज्य की जनता को क्या जवाब दें?

नेताओं और अधिकारियों को कुछ सूझ नहीं रहा

एनडीए नेता हर रोज आरजेडी और लालू यादव परिवार पर जंगल राज का आरोप लगाकर फिर से सत्ता में आने की बात करते थे. अब उनको कुछ सूझ नहीं रहा है. एनडीए नेता अजीब अजीब तर्क दे रहे हैं. कुछ दिन पहले एक नेता ने बयान दिया था कि हर चुनाव के पहले अचानक अपराध की दर बढ़ जाती है. इस नेता का बयान का मतलब ये ही निकाला जा सकता है कि या तो विपक्ष क्राइम करने लगता है या हर चुनाव के पहले सरकार और पुलिस काम करना बंद कर देती है. जाहिर है कि दोनों ही स्थितियों में सरकार में शामिल लोगों के लिए बहुत शर्मिंदगी की बात हो गई है.

अब बिहार पुलिस के सबसे बड़े अफसर ने कहा है कि जून-जुलाई में अपराध बढ़ जाता है. वो इसके लिए आंकड़े भी देते हैं. यानि कि वो जानते हैं कि इस मौसम में अपराध बढ़ जाते हैं. पर वो शायद कुछ कर नहीं सकते कि क्योंकि मौसम से लड़ना तो उनके वश में है ही नहीं. इस काम के लिए तो मौसम विभाग को लगना पड़ेगा . आखिर पुलिस बंदूक चलाने वालों को कैसे रोक सकती है? प्रदेश में विपक्ष के सबसे बड़े नेता तेजस्वी तंज कसते हैं कि दरअसल मौसम ने बंदूकें चलवाईं. जाहिर पुलिस के बयान पर इससे बेहतर जवाब और क्या हो सकता है? 

पुलिस के पास कई और बहाने थे, पर ये तो हद ही था

बिहार के एडीजीपी लॉ एंड ऑर्डर (अतिरिक्‍त पुलिस महानिदेशक) कुंदन कृष्णन ने कहा कि हाल के दिनों में राज्य में हुई हत्याओं, जैसे कि पाटना में व्यापारी गोपाल खेमका और बीजेपी नेता विक्रम झा की हत्याएं का संबंध मौसमी पैटर्न से है. उनके अनुसार, जून और जुलाई में हत्याओं में वृद्धि प्री-मॉनसून मौसम की विशेषता है, जब तापमान में बदलाव और आर्थिक तनाव हत्या जैसे अपराधों को बढ़ावा देता है. एडीजीपी ने कहा कि इस समय किसानों में फसलों की बर्बादी का डर और आगामी राज्य चुनावों की राजनीतिक गर्मी अपराध दर को प्रभावित कर रही है.

एडीजी कुंदन कृष्णन ने कहा- 'ज्यादातर हत्याएं अप्रैल, मई और जून के महीने में होती हैं. यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक बारिश नहीं आ जाती, क्योंकि ज्यादातर किसानों के पास काम नहीं होता और इसी दौरान अपराध बढ़ते हैं.' कुंदन कृष्णन को बिहार में इसलिए जाना जाता है कि वो किसी क्रिमिनल और माफिया के खिलाफ एक्शन लेने से नहीं डरते हैं. यही कारण हैं कि वो सीएम नीतीश कुमार के बहुत खास भी हैं. वह अपनी सख्ती और तेज तर्रार शैली के लिए भी जाने जाते हैं. अभी हाल ही में खेमका हत्याकांड के 72 घंटे के भीतर मुख्य शूटर को गिरफ्तार करके उन्होंने जो इज्जत कमाई थी वो उन्होंने अन्नदाता को सुपारी लेकर हत्या करने वाला बताकर कम कर ली है. हो सकता है यह बयान उन्होंने अपने आका को बचाने के लिए दिया हो. पर उनके आका नीतीश कुमार भी उनके इस बयान से खुश नहीं होंगे.

एडीजीपी साहब को अगर लगता है कि प्रदेश में सबसे अधिक हत्याएं किसान करते हैं. तो माफिया, लुटेरे-डकैत, स्नैचर , किडनैपर्स पर सख्ती करने की जरूरत ही नहीं है. आखिर पुलिस वालों का घर इनसे ही चल रहा है. बिहार सरकार की सैलरी ही कितनी है. किसान का लड़का अगर बेरोजगार होकर सुपारी किलर का काम कहीं कर भी रहा है तो यह सरकार का ही दोष है. एडीजीपी साहब यह कहकर अपने आका को और बुरी तरह फंसा रहे हैं.

क्यों यह नाकामी छुपाने का बहाना

हालांकि, इस बयान को राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन की नाकामी छुपाने का प्रयास माना जा रहा है. एडिशनल डीजीपी कुंदन कृष्णन कहना है कि मौसम के कारण लोगों का मूड खराब होता है, और यह हिंसक व्यवहार को प्रेरित करता है.  दरअसल पुलिस यह कह कर बच नहीं सकती कि गर्मी में लोगों का मूड गरम हो जाता है  इसलिए हत्याएं होती हैं. पुलिस को जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स के बल पर सैलरी मिलती है.

 अगर उन्हें पहले से पता है कि जून-जुलाई में क्राइम बढ़ जाता है, उन्हें पता है कि चुनावों के पहले राजनीतिक रंजिश के चलते क्राइम बढ़ जाता है, उन्हें पता मॉनसून आने के बाद क्राइम बढ़ जाता है,, उन्हें पता है कि फसलों के कटने के बाद क्राइम बढ़ जाता है तो पुलिस को अपनी निगरानी भी तो बढ़ानी चाहिए. पुलिस को बताना चाहिए कि यह जानते हुए कि इन महीनों में क्राइम बढ़ जाता पुलिन ने कितने अतिरिक्त बल लगाए, गश्त की फ्रीक्वेंसी कितनी बढ़ाई गई, गिरफ्तारी और जांच की दर इन महीनों में बढ़ाने के लिए क्या क्या उपाय किए गए? क्या सिर्फ इतना भर कह देने से पुलिस और सरकार बच सकती है कि जून-जुलाई में मौसम के चलते अपराध बढ़ जाता है. अगर पुलिस को अपराध के ट्रेंड का पता चल गया है तो अपराध को रोकना तो और आसान हो जाता है. पर जब केवल बहाने अपनी शर्म छुपाने के लिए बनाए जाएंगे तो जाहिर है कि सवाल तो उठेंगे ही.

पुलिस अपनी कमजोर कड़ी खत्म नहीं करेगी तो ये बहाने बनाने ही होंगे

बिहार पुलिस (police.bihar.gov.in) और राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (scrb.bihar.gov.in) पर अगर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि बिहार में अपराध के नियंत्रण पर काम ही नहीं हो रहा है. बिहार में क्राइम के मामलों में गिरफ्तारी की दर केवल 38-40% रही, जो राष्ट्रीय औसत (45%) से कम है.

2023 में पुलिस हेल्पलाइन (112) पर 2.5 लाख कॉल दर्ज की गईं, लेकिन 30% मामलों में समय पर कार्रवाई नहीं हुई.  पुलिस बल की कमी भी अपराध को रोकने में मुश्किल खड़ी कर रही है.बिहार पुलिस की स्वीकृत संक्या 2.29 लाख है, लेकिन 2024 तक केवल 1.10 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं. जाहिर है कि आधे से भी कम कर्मी गश्त और जांच को प्रभावित करते हैं.

बिहार में 1000 व्यक्तियों पर केवल 48 पुलिसकर्मी हैं, जो राष्ट्रीय औसत (144) से बहुत कम है. 2023 में 1.5 लाख आपराधिक मामले लंबित थे, जिनमें से 60% हत्या और डकैती से संबंधित थे . राज्य में अभी तक केवल 5,000 सीसीटीवी कैमरे ही लगाए जा सके हैं जो इतने बड़े राज्य को कवर करने के लिए अपर्याप्त हैं.

साइबर क्राइम के 1,200 मामलों में से 70% अनसुलझे हैं, जो तकनीकी बुनियादी ढांचे की कमी को दिखाता है. 2023 में पुलिस मुख्यालय को 2,000 से अधिक भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलीं, लेकिन केवल 15% पर कार्रवाई हुई . यह पुलिस बल में विश्वास की कमी को दर्शाता है.

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