बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के विरोध को विपक्ष ने मुद्दा बना दिया है. अगर कायदे से देखें तो नुकसान तो बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को भी हो रहा है. पर अल्पसंख्यक वोटों को मोबलाइज करने के लिए विपक्ष ने इस मुद्दे को तूल दे दिया है. जिस तरह सीएए और एनआरसी को लेकर पूरे देश में यह नरेटिव सेट करने की कोशिश हुई कि अगर ये कानून लागू हुए तो बहुतों की नागरिकता चली जाएगी, वैसा ही कुछ मतदाता सूची पुनरीक्षण के साथ हो रहा है . हालांकि सीएए लागू हुआ और आज तक किसी की नागरिकता नहीं गई. इसी तरह एक नरेटिव सेट किया जा रहा है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के बहाने करीब 3 से 4 करोड़ लोगों को मतदान से वंचित कर दिया जाएगा. जिसमें बड़ी संख्या में गरीब, अति पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक शामिल हैं. बिहार के वयोवृद्ध पत्रकार सुरेंद्र किशोर लिखते हैं कि अगर शाहीन बाग में मुसलमानों को बरगलाने नेताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें सजा दिलाई गई होती तो एक बार फिर इस तरह का दुष्प्रचार नहीं किया जाता. गौरतलब है कि सीएए लागू होने के बाद मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी का डर दिखाकर दंगे भड़काए गए जिसके चलते करीब 69 लोगों की जान चली गई थी.
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि बिहार में जिस तरह यह बात फैलाई गई है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण से करोड़ों लोगों मतदान से वंचित हो जाएंगे , उससे कभी भी दंगा भड़क सकता है. बिहार में यह भी अफवाह फैलाई जा रही है कि देश में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर बनाने की दिशा में यह पहला कदम है. किशोर लिखते हैं कि अगर नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर बनता भी है तो इसका विरोध क्यों होना चाहिए. दुनिया के हर देश में पॉपुलेशन रजिस्टर है ,पाकिस्तान में भी है. आखिर इसका विरोध केवल इसलिए ही होता है ताकि किसी को भी अवैध घुसपैठिये को वोटर बनाकर अपने पक्ष में मतदान कराया जा सके. जाहिर है यह सब केवल और केवल मुस्लिम वोटों के तुष्टिकरण का खेल है. जो आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों इस समुदाय के साथ खेल रही हैं. क्यों कि इन पार्टियों को पता है कि उन्हें एकमुश्त वोट अल्पसंख्यकों का ही मिलने वाला है.
महागठबंधन का विरोध तो समझ में आता है पर तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने वाकई में हद ही कर दी. ब्रायन मतदाता सूची पुनरीक्षण को भारत में नाजी शासन की शुरुआत बता रहे हैं. ब्रायन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के एसआईआर (मतदाता सूची पुनरीक्षण) को एनआरसी के लिए पिछले दरवाजे से प्रवेश वाले बयान का जिक्र करते हुए कहते हैं कि यह एक भयावह कदम है. 1935 में नाजियों के शासन में लोगों को पूर्वज पास, पहचान का प्रमाण दिखाना होता था. क्या यह नाजी पूर्वज पास का नया संस्करण है? जाहिर है कि यह केवल अल्पसंख्यकों को डराकर उनको मोबलाइज करने का खतरनाक खेल खेलना है.
हालांकि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट की माने तो सभी दलों में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर चिंता है. क्योंकि सभी को यह लग रहा है कि कहीं उनके समर्थक वोटों का नाम ही न कट जाए. इस रिपोर्ट में बीजेपी और जेडीयू और अन्य एनडीए दलों के नेताओं से बातचीत के आधार पर यह बताया गया है कि सभी इस चुनाव आयोग के इस फैसले से नाखुश हैं. एलजेपी (आरवी) के एक नेता ने एक्सप्रेस को बताया कि मतदाता इतना प्रेरित नहीं होगा कि वह जरूरी दस्तावेज हासिल करने के लिए मेहनत करे या पैसे खर्च करे. आखिरकार, पार्टी कार्यकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके वोट बैंक को वोट देने का अधिकार बरकरार रहे.
इसी रिपोर्ट में जेडी(यू) के एक नेता के हवाले से लिखा गया है कि इससे गरीबों के लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा हो सकती हैं. जबकि लोगों के पास सरकारी लाभ से जुड़े दस्तावेज हैं, लेकिन बड़ी संख्या में लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज नहीं हो सकते हैं. यह अभियान अत्यंत पिछड़ी जातियों को सबसे अधिक प्रभावित कर सकता है क्योंकि वे गरीब और अशिक्षित हैं. लेकिन दलितों की तरह सुरक्षित नहीं हैं या यादव जैसी पिछड़ी जातियों की तरह राजनीतिक रूप से शक्तिशाली नहीं हैं.
जिस तरह का बयान शुक्रवार को मुख्य चुनाव आयुक्त का आया है उसका असर भी सबसे ज्यादा बीजेपी और जेडीयू जैसी पार्टियों का ही होने वाला है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि देश के मेट्रो शहरों में रहने वाले प्रवासी बिहारियों का अधिकतर वोट बीजेपी को ही जाता है. सीईसी का कहना है कि जो व्यक्ति जहां का होगा केवल वही का वोटर आईडी उसे मिल सकेगा. मतलब साफ है कि अगर दिल्ली में आपका वोटर आईडी बन गया है तो आप पटना के वोटर नहीं हो सकते हैं. जाहिर है कि ऐसा होने पर बिहार के करीब 20 प्रतिशत वोटर्स वोट देने से वंचित रह जाएंगे. इन 20 प्रतिशत वोटर्स में करीब 15 प्रतिशत वोटर एनडीए के ही होंगे. इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति ही है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण केवल महागठबंधन को टार्गेट करने के लिए किया जा रहा है.
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