म्यांमार बॉर्डर पर भारतीय सेना ने किए ड्रोन अटैक? ULFA के दावे पर आर्मी ने दिया जवाब

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प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट यानी ULFA (I) ने रविवार को दावा किया कि भारतीय सेना ने म्यांमार सीमा पर उसके कैंप पर ड्रोन अटैक किए हैं, जिसमें संगठन के एक सीनियर लीडर की मौत हुई है. हालांकि भारतीय सशस्त्र बलों की ओर से इस घटनाक्रम की कोई पुष्टि नहीं की गई है.

उल्फा ने किया ड्रोन अटैक का दावा

उल्फा (आई) ने एक प्रेस बयान में कहा कि कई मोबाइल कैंप पर रविवार तड़के ड्रोन से हमले किए गए. इसमें दावा किया गया है कि हमलों में प्रतिबंधित संगठन का एक सीनियर लीडर मारा गया, जबकि करीब 19 अन्य घायल हो गए. संपर्क करने पर रक्षा प्रवक्ता ने पीटीआई को बताया कि ऐसे किसी हमले की कोई जानकारी नहीं है. लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने कहा, 'भारतीय सेना के पास इस तरह के किसी ऑपरेशन की कोई जानकारी नहीं है.'

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रिपोर्ट्स के मुताबिक संगठन ने दावा किया कि हमले में इस्तेमाल किए गए करीब 150 से ज़्यादा ड्रोन इज़रायल और फ्रांस में निर्मित थे. संगठन ने कहा कि हमलों में संगठन के लेफ्टिनेंट जनरल नयन असोम की मौत हो गई और 19 अन्य घायल हो गए. एक अन्य प्रेस रिलीज में उल्फा-आई ने दावा किया कि उसके दो और नेता, ब्रिगेडियर गणेश असोम और कर्नल प्रदीप असोम, बाद में हुए मिसाइल अटैक में मारे गए हैं.

सशस्त्र बलों ने दावे को किया खारिज

परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा (आई) भारत के साथ शांति समझौते का हिस्सा नहीं है. भारतीय सेना और अर्धसैनिक बल असम राइफल्स ने कहा कि उन्हें पड़ोसी देश में किसी भी स्ट्राइक की जानकारी नहीं है, जो फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद गृहयुद्ध झेल रहा है. भारतीय सशस्त्र बल भारत-म्यांमार के बीच करीब 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा की सुरक्षा में तैनात हैं. 

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उल्फा (आई) असम का एकमात्र ऐसा उग्रवादी समूह है जिसने न तो सरकार के साथ कोई शांति समझौता किया है और न ही उसे भंग किया गया है. इसने तब तक युद्धविराम वार्ता से इनकार कर दिया है जब तक सरकार असम की संप्रभुता पर चर्चा के लिए सहमत नहीं हो जाती. साल 1979 में गठित उग्रवादी संगठन उल्फा पर केंद्र सरकार ने 1990 में ही प्रतिबंध लगा दिया था. 

शांति समझौते में शामिल नहीं ULFA (I)

हाल ही में केंद्र सरकार, असम सरकार और ULFA के बीच त्रिपक्षीय शांति समझौते पर साइन हुए थे और 40 साल में यह पहला मौका था, जब किसी सशस्त्र उग्रवादी संगठन ने शांति समझौता साइन किया हो. लेकिन इस समझौते में परेश बरुआ के नेतृत्व वाले कट्टरपंथी संगठन उल्फा (आई) ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. 

अपने गठन के बाद साल 2010 में उल्फा दो हिस्सों में बंट गया था. एक गुट की अगुवाई अरबिंद राजखोवा ने की, जो कि सरकार के साथ बातचीत के पक्षधर थे, जबकि दूसरे गुट का नेतृत्व परेश बरुआ के हाथ में था, जो बातचीत के विरोधी थे.

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