सिंधु जल संधि का क्‍या हश्र करने जा रही है मोदी सरकार? किसानों से संवाद में इरादे का खुलासा

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सिंधु नदी के पानी के बंटवारे को लेकर नेहरू-कालीन संधि, जो 65 वर्षों तक भारत-पाकिस्तान के बीच जल सहयोग का प्रतीक रही, अब अनिश्चितता के दौर में है. मोदी सरकार ने पहलगाम अटैक के बदले में सिंधु जल संधि को निलंबित करके एक ऐतिहासिक कदम उठाया है. इसका निलंबन भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करता है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं. जिसका स्पष्ट मतलब था कि सिंधु नदी जल संधि अभी निलंबित ही रहेगी. इस बीच ऐसी खबरें भी आईं हैं कि जम्मू-कश्मीर और हरियाणा और राजस्थान के किसानों ने नेहरू-कालीन अन्याय के अंत के रूप में इसका स्वागत किया है. केंद्र सरकार ने भी आगे बढ़कर डी-सिल्टिंग, रनबीर नहर का विस्तार, और नए जलाशयों का निर्माण आदि को शुरू कराके भारत के जल उपयोग को बढ़ाने और किसानों की जरूरतों को पूरा करने का संकल्प ले लिया है. हालांकि, ये योजनाएं अल्पकालिक प्रभाव तक सीमित रखेंगी, क्योंकि बड़े बुनियादी ढांचे को पूरा होने में कुछ समय लगेगा.

सरकार ने सिंधु जल संधि (IWT) के खिलाफ जनमत तैयार करना शुरू कर दिया है. उधर पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के पहले ही भारत द्वारा संधि को स्थगित करने को युद्ध की कार्रवाई बताया था. जाहिर है कि पाकिस्तान भी चुप बैठने वाला नहीं है. पाकिस्तान और चीन की दोस्ती जगजाहिर है. चीन के कई प्रोजेक्ट जैसे CPEC भी पाकिस्तान में चल रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है. अपने दोस्त पाकिस्तान के लिए चीन भारत पर दबाव बना सकता है.

मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि (IWT) के खिलाफ जनमत तैयार कर रही है

कुछ दिन पहले इस 1960 की संधि को ऐतिहासिक भूल कहने के बाद, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को किसान संगठनों से मुलाकात की और उन्हें समझाया कि किस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विशेषज्ञों के विरोध के बावजूद इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे.

उन्होंने कहा कि नेहरू ने न केवल भारत के हितों की अनदेखी कर पाकिस्तान को पानी दिया, बल्कि 83 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता भी दी, जिसकी आज की कीमत लगभग 5500 करोड़ रुपये है. चौहान का इशारा उस राशि की ओर था, जो भारत ने पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर वैकल्पिक नहरें बनाने के लिए दी थी.

चौहान ने कहा, हमने अपने किसानों के हितों की कीमत पर पाकिस्तान को पानी दिया, जबकि वही पड़ोसी देश आतंकवाद को जन्म दे रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी संसद में इस संधि का विरोध किया था.

नेहरू के उस बयान का हवाला देते हुए जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत ने पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देकर शांति खरीदी, चौहान ने सवाल उठाया, वह कैसी शांति थी? हमने तो पानी भी गंवाया और पैसा भी.

चौहान ने बताया कि सरकार ने एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की है जिसमें तत्काल, मध्यम और दीर्घकालीन योजनाएं शामिल हैं. जैसे जल भंडारण क्षमता बढ़ाना, निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को प्राथमिकता पर पूरा करना और रणबीर और प्रताप नहरों के उपयोग से जम्मू क्षेत्र को अधिक पानी उपलब्ध कराना. 

संधि के निलंबन से जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, और राजस्थान के किसानों में उम्मीद जगी है कि अब उन्हें पर्याप्त पानी मिल सकेगा. कि इन क्षेत्रों में किसान लंबे समय से संधि को अन्यायपूर्ण मानते रहे हैं.संधि के तहत जम्मू-कश्मीर को पश्चिमी नदियों से केवल 13.4 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई की अनुमति है, लेकिन केवल 6,42,477 एकड़ ही सिंचित हो पाए हैं.  जलाशयों की कमी के कारण महंगी डी-सिल्टिंग की आवश्यकता पड़ती है.

हरियाणा और राजस्थान पूर्वी नदियों के पानी पर निर्भर हैं, लेकिन इंदिरा गांधी नहर जैसी परियोजनाएं अधूरी हैं, जिससे भारत अपने 33 मिलियन एकड़-फीट (MAF) जल कोटे का पूरा उपयोग नहीं कर पाता.

नेहरू-कालीन संधि का भविष्य

भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को निलंबित किया गया है, जिसका अर्थ है कि भारत अपने दायित्वों, जैसे डेटा साझा करना और परियोजना सूचनाएं देना, को अनदेखा कर सकता है. हालांकि, संधि को पूरी तरह समाप्त करने के लिए दोनों देशों के बीच एक नई संधि की आवश्यकता है, जैसा कि अनुच्छेद XII(3) में उल्लेख है.

पाकिस्तान में, संधि का निलंबन किसानों के लिए आपदा के रूप में देखा जा रहा है. पाकिस्तान की 80% कृषि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है, जो पंजाब और सिंध प्रांतों में 85% खाद्य उत्पादन का सपोर्ट सिस्टम है.

पाकिस्तानी किसान डर रहे हैं कि भारत जल प्रवाह को रोक सकता है, जिससे उनकी फसलें नष्ट हो सकती हैं. पाकिस्तान की कृषि 24% GDP में योगदान देती है और 37.4% रोजगार प्रदान करती है. जल की कमी से खाद्य कीमतें बढ़ सकती हैं और छोटे किसान बरबाद हो जाएंगे.

जाहिर है कि पाकिस्तान चुप नहीं बैठने वाला है. पाकिस्तान ने संधि के निलंबन को गैरकानूनी बताया और विश्व बैंक, स्थायी मध्यस्थता न्यायालय, और ICJ में चुनौती देने की योजना बनाई है. भारत ने तर्क दिया कि पाकिस्तान का आतंकवाद संधि के उल्लंघन के समान है, जो वियना संधि के तहत निलंबन को जायज ठहराता है.

यदि पाकिस्तान आतंकवाद पर भारत की मांगों को मान लेता है, तो संधि को बहाल किया जा सकता है, लेकिन यह संभावना कम है. भारत 2023 से संधि के संशोधन की मांग कर रहा है, ताकि जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, और जम्मू-कश्मीर की जरूरतों को शामिल किया जाए. 

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत संधि से बाहर निकलता है, तो यह क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकता है, क्योंकि पाकिस्तान इसे युद्ध की कार्रवाई मानता है. पर सत्य यह है कि भारत जितना मजबूत हुआ है वहीं पाकिस्तान इतना कमजोर हुआ है कि युद्ध की बात वह सोच भी नहीं सकता है. सीजफायर करवाने के लिए पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ जिस तरह ट्रंप का शुक्रिया अदा कर रहे थे उससे साफ समझा जा सकता है कि युद्ध टलने से उन्होंने कितनी राहत की सांस ली है.

चीन की संभावित भूमिका

चीन, जो सिंधु नदी का ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (तिब्बत) नियंत्रित करता है, संधि में औपचारिक पक्षकार नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव क्षेत्रीय जल प्रबंधन और भारत-पाकिस्तान संबंधों पर गहरा है. 

 चीन के पक्ष में सबसे बड़ी बात जो जाती है वो यह है कि सिंधु नदी तिब्बत के मानसरोवर झील के पास कैलाश पर्वत से निकलती है. चीन ने इस क्षेत्र में कई बांध और जल परियोजनाएं बनाई हैं, जैसे डेमचोक (लद्दाख के पास) में एक छोटा बांध.

चीन ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्सांगपो) और सतलुज पर बड़े बांध बना रहा है, जो भारत की 30% ताजे पानी और 44% हाइड्रोपावर क्षमता को प्रभावित करते हैं. भारत और चीन के बीच कोई औपचारिक जल-साझा संधि नहीं है, केवल डेटा साझा करने का MoU है, जो 2017 के डोकलाम संकट में रुका था.

चीन के संभावित भूमिका इस लिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) में सिंधु पर इंडस कैस्केड (दासु, डायमर-बाशा जैसे बांध) शामिल हैं. चीन ने पाकिस्तान के जल क्षेत्र में अरबों डॉलर निवेश किए हैं.

हालांकि चीन ने भारत की ओर से किए गए संधि निलंबन पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है. संधि निलंबन के बाद, पाकिस्तान के PM शहबाज शरीफ के सहयोगी राणा इहसान अफजाल ने चेतावनी दी कि भारत का कदम चीन को ब्रह्मपुत्र पर कार्रवाई के लिए उकसा सकता है.

यदि भारत पश्चिमी नदियों का जल रोकता है, तो चीन ब्रह्मपुत्र या सतलुज पर बांधों से भारत को नुकसान पहुंचा सकता है. 2016 में, चीन ने शियाबुकु नदी (ब्रह्मपुत्र की सहायक) का प्रवाह अस्थायी रूप से रोका था. एक स्वतंत्र सिंधु बेसिन संगठन (जैसे नाइल बेसिन इनिशिएटिव) की स्थापना में चीन की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. यह जलवायु परिवर्तन, बाढ़ प्रबंधन, और जलाशय निर्माण पर सहयोग को बढ़ावा दे सकता है.

मोदी सरकार की योजनाएं

मोदी सरकार ने संधि के निलंबन के बाद जल उपयोग को बढ़ाने के लिए तीन-स्तरीय योजना बनाई है. अल्पकालिक, मध्यमकालिक, और दीर्घकालिक. सरकार की अल्पकालिक योजनाओं के तहत तुरंत सिंधु, झेलम, और चिनाब नदियों से गाद (सिल्ट) हटाने और ड्रेजिंग शुरू करने का फैसला किया गया है. यह जल प्रवाह को नियंत्रित करने और भारत के जल उपयोग को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने 25 अप्रैल 2025 को कहा, नदियों की डी-सिल्टिंग जल्द शुरू होगी ताकि पानी को रोका और डायवर्ट किया जा सके.

भारत ने पाकिस्तान के साथ हाइड्रोलॉजिकल डेटा, बाढ़ चेतावनियां, और परियोजना विवरण साझा करना बंद कर दिया है. यह पाकिस्तान की जल प्रबंधन क्षमता को प्रभावित करेगा. भारत मौजूदा रन-ऑफ-रिवर (RoR) हाइड्रोपावर परियोजनाओं, जैसे सलाल और बगलिहार, में गाद निकालने की प्रक्रिया शुरू करेगा. इससे पाकिस्तान में अस्थायी जल कमी हो सकती है.

मध्यमकालिक योजनाओं में भारत सरकार  रनबीर नहर, जो चिनाब नदी पर है, को 60 किमी से 120 किमी तक विस्तार करने की योजना बना रही है. इससे भारत 40 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड से 150 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड जल डायवर्ट कर सकेगा, जिससे पाकिस्तान के पंजाब में जल उपलब्धता कम होगी.

भारत ने कश्मीर में किशनगंगा, रतले, और सलाल जैसी परियोजनाओं की जलाशय क्षमता बढ़ाने का काम शुरू किया है. इंदिरा गांधी नहर को पूरा करने और सतलुज-यमुना लिंक को मजबूत करने की योजना है, ताकि हरियाणा और राजस्थान में सिंचाई बढ़े.

 भारत सरकार की दीर्घकालिक योजनाओं में बड़े जलाशयों का निर्माण शामिल है. सरकार बड़े जलाशयों और बांधों का निर्माण शुरू करने की योजना बना रही है जो संधि के तहत पहले प्रतिबंधित थे. इन परियोजनाओं को पूरा होने में 5-10 साल लग सकते हैं, लेकिन ये भारत को पश्चिमी नदियों के जल को पूरी तरह नियंत्रित करने की क्षमता देंगे. इसके साथ ही जल डायवर्जन का भी प्रस्ताव है. इन प्रस्तावों में सिंधु, झेलम, और चिनाब के जल को उत्तरी भारत की नदियों, जैसे यमुना, में डायवर्ट करना शामिल है.

सरकार ने जम्मू-कश्मीर में 7 लाख एकड़ अतिरिक्त भूमि की सिंचाई का लक्ष्य रखा है. हरियाणा और राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर के पूरा होने से इन राज्यों में 30 लाख एकड़-फीट जल का उपयोग बढ़ेगा.

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