पांच साल की रोक के बाद कैलास मानसरोवर की यात्रा एक बार फिर शुरू हो गई है. सनातन परंपरा में कैलास पर्वत और मानसरोवर झील ये दोनों ही सबसे बड़े और सबसे कठिन तीर्थस्थान माने गए हैं. कैलास को भगवान शिव का स्थायी निवास स्थान और इसी क्षेत्र में स्थित मीठे और साफ पानी की सुंदर झील को मानसरोवर के नाम से जाना जाता है. अलग-अलग पुराणों में कैलास-मानसरोवर से जुड़ी कई कथाएं दर्ज हैं, जो इसके महत्व को और अधिक बढ़ाती हैं, बल्कि सिर्फ हिंदू ही नहीं, जैन, बौद्ध और सिख भी इस क्षेत्र को तीर्थ के रूप में ही जानते-मानते हैं. भारत के पड़ोसी देश चीन में भी एक खास धार्मिक समुदाय के लोग कैलास मानसरोवर में आस्था रखते हैं.
क्या है मानसरोवर झील से जुड़ी मान्यता?
मानसरोवर झील के विषय में मान्यता है यहां माता पार्वती स्नान करती हैं और यह झील ब्रह्मा के आनंदित हृदय से उत्पन्न हुई. मन से उत्पन्न होने के कारण ही इसे मानसरोवर कहा गया है. वैष्णव संप्रदाय में एक प्रचलित कथा है कि भगवान विष्णु के भक्ति में बहे आंसू को ब्रह्म देव ने अपने कमंडल में जगह दी और फिर समय आने पर उससे कैलास में मन को सुख पहुंचाने वाली मानसरोवर झील का निर्माण किया. स्कंद पुराण के काशीखंड में एक स्थान पर शिव बताते हैं कि मानसरोवर ने काशी में कठिन तप किया इसी तप के वरदान में उसे तीर्थ बनने का सौभाग्य मिला. उनके ही वर्णन के अनुसार इस झील में स्नान करने से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है और सीधा रुद्रलोक को जाता है.
क्या है भवसागर?
'भवसागर' का जिक्र हर पुराण में लगभग एक जैसे ही अर्थ के लिए हुआ है. इसे कहीं जन्म-मरण का चक्र कहता है, कोई इसे सांसारिक सुखों का जाल कहता है, जो वास्तव में दुखदायी होते हैं लेकिन हम-आप समझ नहीं सकते. मानसरोवर तीर्थ का जल इसी चक्र, झंझावात, माया आदि से छुटकारा दिलाकर अध्यात्म की ऐसी राह पर ले जाता है, जिसे मोक्ष कहते हैं. मोक्ष यानि मुक्ति का मार्ग...
रामायण और मानस में भी मिलता है कैलास का जिक्र
कैलास का जिक्र रामकथा में भी मिलता है. रामायण में रावण के प्रताप का वर्णन करने के लिए कहा जाता है कि वह हर दिन लंका से कैलास तक महादेव शिव के दर्शन करने आता था. एक दिन वह शिवजी को ही कैलास से उठा ले जाने की कुचेष्टा के साथ आया. रावण ने कैलास को अपने हाथ पर रखकर ले जाने की कोशिश की, लेकिन महादेव शिव ने सिर्फ पैर के अंगूठे से दबाव डालकर कैलास को दबा दिया, जिसमें रावण के हाथ भी दब गए और वह चीख पड़ा. तब उसने भयंकर पीड़ा की इसी अवस्था में शिव तांडव स्त्रोत रचा और तुरंत ही शिव को सुनाया. शिव ने इस स्त्रोत को मान्यता प्रदान की साथ ही इसे भक्ति भाव से की जाने वाली अपनी पूजा में शामिल किया.
कुबेर की भी नगरी है कैलास
कहते हैं कि कुबेर का महल पहले लंका का ही स्वर्ण महल था, लेकिन रावण ने उस महल पर कब्जा कर कुबेर को वहां से निकाल दिया. तब कुबेर, शिवजी की शरण में कैलास ही लौट आया और फिर उसने यहीं अपनी नई नगरी भी बसाई. इसलिए कैलास को कुबेर का तीर्थ स्थल भी कहते हैं. कहते हैं कि कुबेर की अमरावती कैलास में ही है. सनातन में कैलास को ब्रह्मांड का अक्ष, माना जाता है, और इसके चारों दिशाओं को रत्नों से जोड़ा जाता है. दक्षिण में नीलमणि, पूर्व में स्फटिक, पश्चिम में माणिक, और उत्तर में स्वर्ण.
शाक्त परंपरा में भी महत्वपूर्ण है कैलास मानसरोवर
मानसरोवर झील को देवताओं का स्नान स्थल माना जाता है, और इसमें स्नान करने से पापों का शुद्धिकरण होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा भगवान विष्णु के चरणों से निकलकर कैलास पर पहुंचती है और शिव की जटाओं में समाहित हो जाती है. महाभारत में भी कैलास और मानसरोवर का उल्लेख है. यह भी दर्ज है कि पांडवों ने भी मानसरोवर की यात्रा की थी. शाक्त परंपरा में इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां देवी सती का दाहिना हाथ गिरा था.
मानसरोवर के तट पर ही है कल्पवृक्ष
इसके अलावा कैलास में ही कल्पवृक्ष की मौजूदगी की मान्यता भी है. यह वही कल्पवृक्ष है जहां देवी पार्वती की कल्पना मात्र से उनकी पुत्री अशोक सुंदरी का जन्म हुआ और इसी कल्पवृक्ष की कल्पना से श्रीगणेश का बालरूप में अवतरण हुआ. इस कथा शिवपुराण में भी है, जिसमें बताया गया है कि देवी पार्वती ने अपने उबटन से एक बाल प्रतिमा बनाई और कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर उसके सजीव हो जाने की कल्पना की. इसी कल्पना का साकार स्वरूप विनायक हैं, जिन्हें गणों में अग्रणी होने का सौभाग्य मिला और वह गणेश कहलाए. यह पवित्र घटनाक्रम भी कैलास पर हुआ है और मानसरोवर इसका साक्षी है.
हरिवंश पुराण में भी है कैलास मानसरोवर तीर्थ का वर्णन
महर्षि वेदव्यास लिखित हरिवंश पुराण में भी कैलास को सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण तीर्थ बताया गया है और यह भी कहा गया है कि सभी अन्य तीर्थों का पुण्य भी इसी तीर्थ से है. वैशंपायन ऋषि राजा जनमेजय को महाभारत की कथा सुनाते हुए कैलास का रहस्य बताते हैं और बताते हैं कि यह पर्वत साक्षात शिव स्वरूप है. हरिवंश पुराण के अध्याय 84 में श्रीकृष्ण ने कैलास के महत्व का वर्णन करते हुए इसे तीर्थराज, ऋषियों के ध्यान में बसने वाली तपस्थली, कुबेर का शिवपूजा स्थल बताया है. मानसरोवर को सुनहरे पंखों वाले हंसों का निवास स्थल बताया है, साथ ही जो गंगा-यमुना, कर्णाली नदियों को जलराशि देने वाला है, जिनके ही जल से अन्य तीर्थ भी पवित्र हैं. कैलास पर ही महाविष्णु को शिवजी की आत्मशक्ति वाला सुदर्शन चक्र मिला था और जो स्थान प्रकृति के हर परिवर्तन का केंद्रबिंदु है.
बौद्ध धर्म में भी पवित्र है कैलास
कैलास पर्वत खुद ही ज्योति स्वरूप है और यह सिर्फ इसका स्मरण ही शिवजी का स्मरण करा सकता है. मन को एकाग्र करने का साधन भी कैलास है. एकाग्रता और मुक्ति के इन्हीं शब्दों के जरिये कैलास का जुड़ाव बौद्ध धर्म से भी हो जाता है. बौद्ध धर्म में बुद्ध का एक स्वरूप है अवलोकितेश्वर. यह बोधिसत्व हैं, जिन्हें ज्ञान का सत्व स्वरूप माना जाता है. कैलाश पर्वत को तिब्बती बौद्ध धर्म में एक पवित्र स्थान माना जाता है, जो अवलोकितेश्वर का निवास माना जाता है.
अवलोकितेश्वर का अर्थ है, जो हर ओर दिखाई देने वाला ईश्वर. इसे दूसरे अर्थों में ऐसा भी कहा जाता है हर किसी को देखने वाला ईश्वर. यह बुद्ध का सबसे शांत, अविचल, करुणा से भरा हुआ और ज्ञान से पूर्ण रूप है. मानसरोवर झील का जल अवलोकितेश्वर की करुणा का ही तरल स्वरूप माना जाता है. 'ओम मणि पद्मे हुम्' तिब्बती बौद्ध धर्म का सबसे अहम मंत्र है, जिसका अर्थ है 'हृदय कमल में चमकता रत्न ही शाश्वत है.' यह पूरा अर्थ ही कैलास की ओर इशारा करता है. दलाई लामा को अवलोकितेश्वर से ही जुड़ा हुआ बताया जाता है.
तिब्बत के बॉन अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है कैलास
कैलास का तिब्बती नाम 'गंग रिन पोचे है, इसका अर्थ है उत्कृष्ट रत्न. यह पर्वत बॉन पो द्वारा बौद्ध धर्म के पहले स्थापित तिब्बती धर्म बॉन पो के अनुयायियों का भी पवित्र तीर्थ रहा है. बॉन पो के अनुयायी ज़ांग जुंग मेरी नाम के देवता की उपासना करते रहे हैं. बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि बुद्ध (अनवतप्त) ने इस पर्वत की कई यात्राएं की और यहां तप किया. बौद्ध ऋषि पद्मासंभव 7वीं-8वीं शताब्दी में तिब्बत में बौद्ध धर्म का वज्रयानी तांत्रिक संप्रदाय लेकर आए. मान्यता है कि उन्होंने बॉन पो संप्रदाय को अपने मायावी द्वंद्व युद्ध में हरा दिया और मुट्ठी भर बर्फ से बॉन रि नाम के एक स्थानीय पर्वत का नामकरण भी कर दिया था. बॉन धर्म में कैलाश को सिपाईमेन (आकाश की देवी) का निवास स्थान माना गया है.
जैन परंपरा में कैलास का महत्व
जैन परंपरा में भी कैलास महत्वपूर्ण स्थान रखता है. जैन धर्म के मानने वाले कैलास पर्वत को मेरु पर्वत बताते हैं. मेरु का एक अर्थ रीढ़ होता है और रीढ़ को संस्कृत में ऋजु कहते हैं, रेखागणित में ऋजु का अर्थ सरल और उच्च प्रतिमान के लिए प्रयोग किया जाता है. सीधी रेखा को ऋजु रेखा कहते हैं. इस तरह कैलास ऋजु पर्वत बन जाता है जो धरती का केंद्र बिंदु भी है. जैन मान्यता है कि उनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने इस स्थान की यात्रा की और यहीं अष्टपद नामक पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया.
सिख समुदाय के लिए धार्मिक महत्व का स्थल
सिख परंपरा में भी कैलास को महत्वपूर्ण दर्जा मिला हुआ है. प्रथम गुरु, गुरुनानक देव के पदों में कैलास पर्वत का जिक्र कई बार मिलता है, जिसमें उनकी यात्रा का भी वर्णन है. सिख धर्म में, कैलास मानसरोवर को पवित्र माना जाता है और गुरु नानक देव की यात्राओं से इसे जोड़ा जाता है. गुरु नानक देव की यात्राएं, जिन्हें उदासी कहा जाता है, दुनिया भर में शांति, प्रेम और समानता के संदेश का प्रसार करने के लिए थीं. उन्होंने इक ओंकार (एक ईश्वर) का संदेश दिया था और उनका ये संदेश अविचल था.
देवत्व से जोड़ता है कैलास
कैलास-मानसरोवर का महत्व इसीलिए अधिक हो जाता है, क्योंकि यह प्रकृति में मौजूद ऐसा स्थान है, जो सीधे देवत्व से जोड़ता है. रहस्यों से भरा हुआ, प्राकृतिक सरलता और कठिनता दोनों के तमाम उदाहरणों से भरपूर, पारलौकिक शक्तियों और इंसानी क्षमताओं को मापने का सबसे ऊंचा प्रतिमान और प्रकृति में ईश्वर तत्व की मौजूदगी का स्पष्ट प्रमाण देने वाला कैलास सिर्फ एक बर्फीला भौगोलिक क्षेत्र नहीं है. यह आस्था, विश्वास और परंपरा की सबसे ऊंची कसौटी भी है, जिसकी राह पर बढ़ने वाला हर कदम मनुष्य को मनुष्यता के एक-एक कदम नजदीक ले जाता है.