सोचिए अगर आपके बच्चे की स्कूल फीस सालाना 12 लाख रुपये हो, तो? सोशल मीडिया पर एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है.
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गूगल में काम करने वाला एक दंपत्ति अपने बच्चे की स्कूल फीस पर सालाना 12 लाख रुपये खर्च करता है. (Photo: AI Generated)
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है. जिसमें एक यूजर ने खुलासा किया कि गूगल में काम करने वाला एक दंपत्ति अपने एक बच्चे की फीस पर हर साल 12 लाख रुपये खर्च करता है. रेडिट पर वायरल हो रही पोस्ट में यूजर ने बताया कि वह एक छोटी सी वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी में काम करता है. एक दिन उसके पास एक क्लाइंट का फाइनेंशियल प्लान आया – वे कपल अपने एक बच्चे की पढ़ाई में हर साल 12 लाख रुपये खर्च करते हैं और उनकी सालाना इनकम 60 लाख रुपये है. वे जानकर यूजर शॉक्ड रह गया.
शिक्षा अब ज़रूरत नहीं, लग्जरी?
यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा- "जब मैं उनके एक साल के कैश फ्लो का जायजा ले रहा था, तो उनके एक बच्चे की स्कूल फीस लगभग 12 लाख प्रति वर्ष देखकर मैं अवाक रह गया. मेरा मतलब है, स्कूल फीस के लिए इस तरह के आंकड़े पहली बार मेरे सामने आए हैं. मैंने 2-4 लाख के बारे में सुना था, लेकिन 5-6 लाख से ज़्यादा कभी नहीं सुना था." असली चौंकाने वाली बात तब सामने आई, जब उस यूज़र ने देखा कि दंपत्ति अपने बच्चे की स्कूल की फीस में ही 11.2 लाख रुपये सालाना खर्च कर रहे हैं. "मैंने 2-4 लाख की स्कूल फीस सुनी थी, 5-6 लाख तक भी पता था... लेकिन 12 लाख? पहली बार देखा!". यूजर ने सवाल उठाया कि क्या बच्चों को ‘अच्छी शिक्षा’ देने की दौड़ में मिडिल क्लास पेरेंट्स पर अत्यधिक आर्थिक दबाव नहीं बन रहा है?
क्या परिवार पर बढ़ रहा वित्तीय दबाव
यूजर ने अपनी पोस्ट मे आगे बताया कि कैसे वे अभी भी एमबीए कोर्स पर 20 लाख रुपये खर्च करने के विचार से जूझ रहे थे, क्योंकि उन्होंने बुनियादी और उच्च शिक्षा के बीच के अंतर को दिखाने का प्रयास किया था और यहां एक कपल सिर्फ स्कूल की फीस में ही 12 लाख खर्च कर रहा है. उन्होंने स्कूली शिक्षा के तेजी से बढ़ते शोषण और अपने बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करने वाले परिवारों पर पड़ने वाले भारी वित्तीय दबाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की.
इंटरनेट पर वायरल हो रहा पोस्ट
एक यूजर ने लिखा- यह स्कूल नहीं, अमीरों का क्लब है, पैसा सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं, उस क्लास का हिस्सा बनने के लिए भी खर्च किया जाता है. ये स्कूल बच्चों को अमीरों के साथ उठने-बैठने और सोचने का तरीका सिखाते हैं. दूसरे यूजर ने लिखा- अगर दोनों गूगल में हैं और फिर भी सिर्फ 60 लाख कमा रहे हैं, तो वो भी मिडिल क्लास ही हैं, हो सकता है कि वो पहले से अमीर न हों. एक अन्य यूजर ने लिखा- “ये माता-पिता तय कर चुके हैं कि उनके बच्चे वही स्ट्रगल नहीं झेलेंगे जो उन्होंने किया. उनका फोकस है बच्चे को सीधे अमेरिका/यूके के टॉप यूनिवर्सिटी भेजना.”
रेडिट यूजर के पास, ज़ाहिर है, कहने को बहुत कुछ था. एक यूजर ने कहा, "बहुत से लोग यह नहीं समझते कि पैसा किसी पुराने ज़माने के क्लब की तरह काम करता है. मैं उस अंदरूनी दायरे का हिस्सा नहीं हूं. लेकिन आप असल में जो खरीद रहे हैं - चाहे वह स्कूल हो, मोहल्ला हो या समर कैंप वह आपके बच्चों को अमीरों के बीच रहने, उनकी सोच को अपनाने और ऐसे फैसले लेने का मौका देता है. जैसे वे पहले से ही उनके दायरे में हों. इस तरह का संपर्क दुनिया को देखने के उनके नज़रिए और उनकी संभावनाओं पर उनके विश्वास को बदल देता है."
एक अन्य यूजर ने लिखा- "यदि माता-पिता दोनों गूगल के लिए काम कर रहे हैं और केवल 60 लाख रुपये प्रति वर्ष कमा रहे हैं, तो वे स्पेक्ट्रम के निचले सिरे पर हैं. इसलिए वे आपकी संपादन श्रेणी में ही आते हैं. बशर्ते कि वे पहले से ही पैसे वाले न हों." एक यूजर ने कहा, "ऐसे माता-पिता पहले ही मन बना चुके हैं कि उनके बच्चे उस दौड़-भाग में शामिल नहीं होंगे जिसका उन्होंने सामना किया. लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि उनके बच्चे को पश्चिमी देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में दाखिला मिले. अगर मैं इतना खर्च उठा सकता, तो मैं भी (और कई भारतीय भी) ऐसा ही करते.
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