नासा-इसरो का कंबाइंड मिशन NISAR अगले तीन महीने में काम करना शुरू करेगा. 30 जुलाई 2025 को लॉन्च होने के बाद नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्टर रडार एक-एक करके अपने अलग-अलग हिस्सों को एक्टिव कर रहा है. उसका 39 फीट चौड़ा रडार एंटीना रिफ्लेक्टर 15 अगस्त को खुल चुका है. यह सैटेलाइट पृथ्वी की जमीन, बर्फ, जंगल और इमारतों की हर छोटी-बड़ी हलचल को बारीकी से देखेगा. भूकंप, ज्वालामुखी और भूस्खलन जैसे बदलावों को भी यह ट्रैक करेगा.
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निसार क्या है और यह क्या करेगा?
निसार एक अनोखा सैटेलाइट है, जो पृथ्वी की सतह को पहले से कहीं ज्यादा बारीकी से देखेगा. इसके L-बैंड और S-बैंड रडार सिस्टम चालू हो गए. ये दोनों सिस्टम मिलकर जंगल, बर्फ, मिट्टी की नमी और जमीन की हलचल को मापेंगे. यह सैटेलाइट हर 12 दिन में पृथ्वी के ज्यादातर हिस्सों को दो बार स्कैन करेगा, जिससे हमें जंगलों, बर्फीली सतहों और इमारतों में होने वाले बदलावों की सटीक जानकारी मिलेगी.
निसार के रडार बादलों और बारिश के बावजूद दिन-रात काम कर सकते हैं. L-बैंड रडार जंगलों के अंदर की मिट्टी और बायोमास को मापेगा, जबकि S-बैंड रडार छोटी वनस्पति, खेती और बर्फ में नमी को देखेगा. यह भूकंप, ज्वालामुखी और भूस्खलन से पहले और बाद में जमीन की छोटी-छोटी हलचल (कुछ मिलीमीटर तक) को भी पकड़ेगा. अगले कुछ हफ्तों में वैज्ञानिक गुणवत्ता की तस्वीरें मिलेंगी. 90 दिन बाद पूरी तरह से वैज्ञानिक काम शुरू होगा.
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भारत-अमेरिका की साझेदारी
निसार भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष सहयोग की मिसाल है. इसरो ने S-बैंड रडार और सैटेलाइट बस बनाया, जबकि नासा ने L-बैंड रडार, एंटीना और डेटा सिस्टम दिए. सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च हुआ यह सैटेलाइट अब 747 किलोमीटर की कक्षा में है. इसरो की टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क इसे कंट्रोल कर रहा है, जबकि नासा का जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) और गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर डेटा मैनेज कर रहे हैं.
यह साझेदारी दिखाती है कि मिलकर काम करने से कितने बड़े लक्ष्य हासिल हो सकते हैं. निसार का डेटा न सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए बल्कि आम लोगों के लिए भी फायदेमंद होगा. यह बाढ़, भूकंप और जंगल की स्थिति को समझने में मदद करेगा, जिससे आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण बेहतर होगा.
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