विषहरी से मनसा देवी तक: नागपंचमी, श्रद्धा और बिहुला के सतीत्व की अद्भुत लोकगाथा

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पश्चिम बंगाल, बिहार और आसाम तक में नागपंचमी का उत्सव सिर्फ एक दिन का नहीं होता है, बल्कि यहां लगभग 15 दिनों तक ये उत्सव मनाया जाता है. इसमें जगह-जगह तो नागमेलों का भी आयोजन होता है, जिनमें समस्तीपुर (बिहार) का नाग मेला बहुत प्रसिद्ध है. लोग अलग-अलग प्रजाति के सांपों को लेकर रैली की तरह निकलते हैं बूढ़ी गंडक नदी के किनारे जमा होते हैं. बच्चे-जवान, बूढ़े तक नदी किनारे जमा होते हैं और नदी में से सांप निकाल-निकालकर करतब दिखाते हैं. 

कैसा होता है बारी कलश?
पूर्वी बिहार के इलाकों में नागपंचमी के विशेष अनुष्ठान के लिए 'बारी कलश' की स्थापना की जाती है. यह मिट्टी का एक बड़ा घड़ा होता है. इसके चारों ओर गोबर से सुंदर आकृति बनाई जाती है. इन आकृतियों में सर्पिल आकृतियां अधिक होती हैं. फिर कलश स्थापना करके पांच नागिन बहिनियों को बुलाया जाता है और कलश पर स्थापित किया जाता है. इनके नाम हैं, जया विषहरी, दुतिला विषहरी, पद्मा कुमारी, आदिसुमिन विषहरी और मैना विषहरी.

पांचों बहन विषहरीकलश पर विराजमान की जाती हैं. प्रतीक के रूप में कलश पर पांचों बहन विषहरी की आकृति बनाई जाती है. कहीं-कहीं पर तो इन कलशों पर जीवित सर्प भी बिठाए जाते हैं.
नागपंचमी पर अंग्र प्रदेश के इलाको (मिथिला, भागलपुर आदि) में बिहुला-विषहरी पूजन की मान्यता है.

क्या है बिहुला-विषहरी की कथा?
बिहुला-विषहरी की कथा, सतीत्व, समर्पण और साहस की अनुपम गाथा है. यह कथा एक ऐसी यात्रा है जो दिल को छू लेती है और आत्मा को झकझोर देती है. पुराणों में नागों का विशेष महत्व है. भगवान विष्णु की शय्या के रूप में शेषनाग का उल्लेख है, तो यह भी माना जाता है कि शेषनाग के फण पर ही यह पृथ्वी टिकी है. भगवान कृष्ण द्वारा यमुना नदी में निवास करने वाले कालिया नाग को वश में करने की कथा तो हर भारतीय के दिल में बसी है. कहते हैं, कृष्ण ने कालिया को कुश से नाथा था, जिसके प्रभाव से कुश में आज भी विष का अंश माना जाता है. ग्रामीण अंचलों में आज भी नागपूजा में कुश का उपयोग होता है, जो इस पर्व को और भी खास बनाता है. 

Nag Panchamiमाता मनसा का पौराणिक चित्र

बिहुला-विषहरी की कथा: मिथक या सच
कथा की शुरुआत होती है पांच बहनों, मैना, बिहुला, भवानी, विषहर और पद्मा से. कहते हैं कि एक बार भगवान शिव सोनदह के तालाब में स्नान कर रहे थे. इसी दौरान उनकी जटा से पांच बाल टूटे और इन पांच बहनों का जन्म हुआ. ये पांचों बहनें मृत्युलोक में अपनी पूजा कराने की महत्वाकांक्षा रखती थीं. उन्होंने शिवजी से अपने लिए भी पूजा मांगी, लेकिन शिवजी ने मना कर दिया और कहा- पूजा पाने के लिए देवताओं की तरह काम करने होते हैं, जन कल्याण करना होता है. इन पांचों में से एक ने तो शिवजी की बात मान ली, एक सोचने लगी कि पता नहीं वह जनकल्याण कर पाएगी कि नहीं, एक न इधर की रही, न उधर की, यानी कोई निर्णय न ले पाई, एक ने सोचा जो और बहनें करेंगी तो वो वही करेगी, लेकिन एक ने तो ठान लिया कि वो तो पूजा लेकर ही रहेगी. 

शिवजी ने विषहरी को चांदौ सौदागर के पास भेजा
तब शिवजी ने उसे अपने भक्त चांद (चांदौ) सौदागर के बारे में बताया. उन्होंने कहा- चांद सौदागर अगर तुम्हारी पूजा मान लेगा तो सब तुम्हें पूजा देने लगेंगे, जाओ कोशिश करके देख लो. ये सुनकर विषहरी चांद सौदागर के द्वारे चली. चारों बहनें भी उसके पीछे गईं. विषहरी ने चांद सौदागर से पूजा की मांग की, लेकिन चांद सौदागर ने इसे ठुकरा दिया. इस अपमान से क्रोधित होकर विषहरी ने बदला लेने का निश्चय किया. वह भेष बदलने में माहिर थी. उसने ब्राह्मण का वेश धारण किया और चांद सौदागर के पास आने-जाने लगी.

चांद सौदागर ने देखा कि ब्राह्नण निःसंतान है तो उसे सम्मान तो देता था, लेकिन मन से नही मानता था. फिर वो यह भी नहीं जानता था कि ये ब्राह्मण विषहरी ही है. जब विषहरी ब्राह्मण उसके पास से चला जाता तब चांद सौदागर विषहर के बैठने की जगह की मिट्टी हटवाकर गोबर से लिपवाता था. यह अपमान विषहर को और भड़काने वाला था. उसने चांद सौदागर को निःसंतान बनाने की ठान ली. 

चांद सौदागर के छह पुत्र थे. एक-एक करके विषहर ने उनके विवाह की सुहागरात में सर्प भेजकर उन्हें डंसवा दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई. चांद सौदागर की छह बहुएं विधवा हो गईं, और उसका घर शोक में डूब गया. विषहर, जो अब भी ब्राह्मण के भेष में थी, मन ही मन इस दुखद स्थिति पर प्रसन्न थी. कुछ समय बाद चांद सौदागर को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम रखा गया बाला लखन्दर. अपने छह पुत्रों की मृत्यु के दुख से ग्रस्त चांद सौदागर अपने सातवें पुत्र का विवाह नहीं करना चाहता था, लेकिन विषहर ने ब्राह्मण भेष में उसकी मति फेर दी और उसे बाला लखन्दर के विवाह के लिए राजी कर लिया. 

बाला लखंदर और बिहुला का विवाह
बाला लखन्दर का विवाह बिहुला से हुआ. बिहुला एक समझदार और साहसी स्त्री थी. वह चांद सौदागर के छह पुत्रों की मृत्यु का रहस्य जानती थी. उसने अपने पिता बेचू साहू से कहा कि बाला लखन्दर के साथ भी वही होगा, जो उसके जेठों के साथ हुआ. उसने उपाय सुझाया कि एक ऐसा घर बनवाया जाए, जिसमें एक भी छिद्र न हो, ताकि सांप प्रवेश न कर सके. चांद सौदागर ने कारीगरों को कड़ी हिदायत दी कि यदि घर में एक भी छिद्र हुआ, तो उनके पूरे परिवार को मौत की सजा दी जाएगी, लेकिन विषहर ने अपनी चाल चली. उसने कारीगर को लालच देकर एक छोटा-सा छिद्र छोड़ने के लिए राजी कर लिया, जो आसानी से नजर न आए. 

जब घर तैयार हुआ, चांद सौदागर ने उसका निरीक्षण किया और उसे कोई कमी नजर नहीं आई. वह संतुष्ट हो गया. बिहुला जब ससुराल आई, तो उसने अपने मायके से एक कुत्ता, एक बिल्ली, एक नेवला, एक गरुड़, एक घोड़ा और अगर-चंदन की लकड़ी साथ ले ली. अगर-चंदन में यह गुण था कि सर्पदंश से मृत व्यक्ति को जीवित किया जा सकता था, लेकिन विषहर की चालाकी के आगे ये सारी सावधानियां बेकार साबित हुईं. सुहागरात में, जब बिहुला और बाला लखन्दर गहरी नींद में थे, विषहर ने उस छोटे छिद्र से एक पतला सांप भेजा. यह सांप बिहुला की बहन थी, जिसे विषहर ने डरा-धमकाकर भेजा था. ये वही नागिन थी, जिसने शिवजी की लोककल्याण वाली बात मान ली थी, लेकिन बहन विषहरी के डर के कारण वह बाला लखंदर को डंसने पहुंच गई थी.

Nag Panchamiमाता मनसा विषहरी का बारी कलश, जिसकी स्थापना बिहुला-विषहरी पूजन में की जाती है (Photo  AI)

विषहरी ने ले लिए बाला लखंदर के प्राण
नागिन ने बाला लखन्दर को डंस लिया, और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया. बिहुला गहरी नींद में थी, और उसकी नींद भी विषहर की माया थी. जब बिहुला की नींद खुली, तो उसने अपने पति को मृत पाया. उसका हृदय दुख से फट पड़ा, और वह छाती पीट-पीटकर रोने लगी. उसकी बहन, जिसने बाला को डंसा था, वह वहीं पलंग के नीचे थे और बिहुला को सांत्वना देने लगी. उसने कहा, "रो मत, बहन. मैं अभी तुम्हारे पति को जीवित कर सकती हूं, लेकिन इससे विषहर की दुर्गति नहीं होगी. वह तुम्हारे छह जेठों की हत्या की जिम्मेदार है. तुम्हें उससे बदला लेना है. धैर्य रखो और अपने पति की लाश लेकर इंद्रलोक जाओ. अब से तुम मुझे अपनी बहन ही मानना और समझना.

बिहुला ने अपनी बहन की बात मानी. उसने बाला लखन्दर की लाश, दो मटकी दही, चार केले के पौधे, और अपनी बहन (नागिन) को अपने जूड़े में बांध लिया. उसने बिल्ली को भी साथ लिया और गंगा किनारे पहुंची. वहां उसने केले के पौधों से एक बेड़ा बनाया, उस पर अपने पति की लाश रखी और इंद्रलोक की ओर प्रस्थान कर गई. 

वह लाश पर दही का लेप लगाती रही, ताकि वह खराब न हो. बीच-बीच में बिल्ली से दही चटवाकर लाश को साफ करती और फिर नया लेप लगाती. यह यात्रा बारह वर्षों तक चली. रास्ते में कई लोगों ने उसे प्रलोभन दिए, लेकिन बिहुला ने अपने पातिव्रत्य धर्म को कभी नहीं छोड़ा. बिहुला की एक दूर की मौसी थी रेघवा. बहते-बहते बिहुला वहां पहुंची और मौसी से सारा हाल सुना दिया. 

रेघवा ने उसे सलाह दी कि वह इंद्रलोक जाए, लेकिन रास्ते में नेतिया धोबिन से सावधान रहे, जो एक राक्षसी है. बिहुला ने नेतिया को अपनी मौसी बनाकर उसका विश्वास जीत लिया. नेतिया उसे इंद्रलोक ले गई, जहां बिहुला ने इंद्र के सामने अपनी आपबीती सुनाई. इंद्र ने कहा- ठीक है जो तुम कह रही हो उस सबको साबित करो तो तुम्हारे पति और छह जेठ जीवित कर दिए जाएंगे. यह सुनकर बिहुला ने अपना जूड़ा खोला और उसी नागिन को सामने कर दिया जिसने बाला लखंदर को डंसा था. 

फिर उसने कहा- इस नागिन से सारा सच सुन लिया जाए और नेतिया धोबिन से भी पूछा जाए कि मेरे जेठ कहां हैं. ये सुनकर नेतिया धोबिन ने कहा- इसके जेठ भी बहकर नदी में आए थे, तो मैंने सबके प्राणों को पतंगा बनाकर अपने घर में रख लिया था. यह सबसुनकर इंद्र देवता क्रोधित हुए. उन्होंने विषहरी को बुलाने के लिए दूत भेजे. दूत विषहरी को पकड़ कर ले आए. नागिन ने विषहरी के सामने सारा रहस्य खोल दिया. इससे विषहरी को काटो तो खून नहीं, लेकिन अब वो कुछ नहीं कर सकती थी. 

Nag Panchamiअपने पति के शव को लेकर इंद्रलोक को जाती सती बिहुला (Photo- AI)

इंद्र ने दिया बिहुला को वरदान
इंद्र ने बिहुला के जेठों और बाला लखन्दर को जीवित कर दिया. बिहुला ने विषहर को सजा देने के लिए उसे डोरी में बांधकर अपने साथ ले लिया. रास्ते में उसने उन लोगों को भी सजा दी, जिन्होंने उसे प्रलोभन दिए थे. फिर बिहुला अपने नगर लौटी. अपने पतिव्रत और सतीत्व के बल पर उसने चांद सौदागर की नष्ट हुई संपत्ति को फिर से पा लिया. अपने सास-ससुर का अंधापन दूर किया और उनके सामने उनके सातों पुत्रों को जीवित खड़ा कर दिया. विषहर को गड्ढे में दफना दिया गया. बिहुला और बाला लखन्दर ने कुछ वर्षों तक राज किया और फिर इंद्रलोक प्रस्थान किया. यह कथा सतीत्व, समर्पण और साहस की अनुपम गाथा है. जिस नागिन ने बिहुला की मदद की थी, बिहुला ने उसे बहुत सम्मान दिया और वह नागों की रक्षिका देवी बन गई. उस दिन उसे समझ आया कि जनकल्याण करने, त्याग की भावना रखने से कोई भी देवता या देवी बन सकता है. 

शिवजी की पुत्री पद्मा नागिन को ही लोककथाओं में मनसा माता कहा जाता है. उन्हें कमल पर बैठे हुए, हंस की सवारी के साथ दिखाया जाता है. उनके दोनों हाथों में एक-एक सांप हैं. इनमें से एक वही नागिन विषहर है, जिसने बिहुला को कष्ट दिए थे. पद्मा के हाथ में उसे कसा हुए दिखाने का तात्पर्य है कि पद्मा ने उसे नियंत्रित किया. दूसरे हाथ में जो एक और नागिन है, वह वो है जो विषहरी के पीछे-पीछे चली थी. सिर पर छत्र बनकर भी एक नागिन है, ये वो बहन है, जिसने सोचा था कि बड़ी बहनें जो करेंगी वैसा ही वो भी देखेगी. एक नागिन पैरों के नीचे है, जो न इधर की रही थी न उधर की. इस तरह यह पांच बहनें ही एक साथ देवी मनसा का पूर्ण स्वरूप हैं.

हालांकि एक मान्यता यह भी है कि सती बिहुला ही देवी है और ये पांचों नागिनियां उसके नियंत्रण में हैं. क्योंकि शिवजी की पांचों पुत्रियों में एक नाम बिहुला विषहरी का भी आता है. इसलिए उसे ही मनसा माना जाता है. 

बिहुला-विषहरी की कथा के कई स्वरूप
बिहुला-विषहरी की कथा का और वर्जन है जो काफी प्रचलित है. उसके अनुसार, मनसा विषहरी के क्रोध और घमंड में किए गए अनैतिक कार्यों को देखते हुए शिवजी चांदो सौदागर के घर प्रकट होते हैं. वह मनसा को समझाते हैं कि ऐसे देवी नहीं बना जाता है, लेकिन मनसा नहीं मानती हैं और कहती हैं कि वह पूजा तो लेकर ही रहेंगी. फिर शिवजी कहते हैं कि, अगर पूजा मिल गई तो क्या करोगी, तब मनसा कहती है कि मैं बाला लखंदर और इसके भाइयों को जीवित कर दूंगी. 

इस पर शिवजी कहते हैं, चांदो सौदागर, तुम मेरे कहने से मनसा को पूजा दो. इस पर सौदागर शिवजी से कहता है कि हे प्रभु, मैं आपका भक्त हूं और मनसा ने मेरा बहुत अनिष्ट किया है, फिर भी मेरा मनसा से कोई बैर नहीं है, लेकिन जिन हाथों से मैं आपको पूजा देता हूं उनसे मैं मनसा को पूजा नहीं दे सकता हूं. कहते हैं कि बाएं हाथ से की गई पूजा न सफल होती है न कोई फल देती है. मैं बाएं हाथ से मनसा को पूजा दूंगा. इस तरह चांदों सौदागर बाएं हाथ से मनसा को अक्षत-फूल, रोली और कलेवा चढ़ाता है. बाएं हाथ से जल देता है और बाएं हाथ में ही पकड़कर आरती भी करता है. 

मनसा इससे भी प्रसन्न हो जाती है, तब शिवजी कहते हैं कि अब अपने वादे के अनुसार सबको जीवित कर दो. मनसा हाथ उठाकर सबको जीवित करने की कोशिश करती है, लेकिन नहीं कर पाती है. तब वह हारकर शिवजी के चरणों में गिर जाती है. तब शिवजी कहते हैं कि किसी को अभय देना कोई चमत्कार नहीं है, देवता शक्तियों से नहीं अपने कर्तव्यों के कारण पूजे जाते हैं. अब मनसा को समझ आ जाता है कि वह क्या गलती कर रही थी. वह सभी से क्षमा मांगती है और तपस्या के लिए चली जाती है. तब शिवजी चांदो सौदागर के पूरे परिवार को जीवन दान देते हैं और बिहुला को उसके सतीत्व के कारण देवी का दर्जा देते हैं.

उधर, तपस्या के बल पर मनसा भी सात्विक बुद्धि की होकर जन कल्याण में जुट जाती है और लोगों का कल्याण करती है. अपनी विषहरने की शक्ति के कारण ही वह विषहरी देवी बन जाती है और मनसा के नाम से पूजनीय हो जाती है. आज भी मनसा देवी की पूजा बाएं हाथ से ही की जाती है.

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